गुरुवार, 26 नवंबर 2020

राष्ट्र-जगत के 'सवाल' और एक उत्तरदायी पत्रकारिता की 'सरोकारिता'

 राष्ट्र-जगत  के 'सवाल' और एक उत्तरदायी पत्रकारिता की 'सरोकारिता'



 

            प्रो.ऋषभ देव शर्मा जी के द्वारा लिखी गई  समस्त टिप्पणियों  को पढ़ने के बाद यदि कोई मुझसे पूछता है कि प्रो. शर्मा जी की पुस्तकों में से यह कौन सी पुस्तक है तो यह कहना तो मेरे लिए कठिन कार्य तो नहीं है किंतु मेरे द्वारा पढ़ी गई यह दूसरी पुस्तक  है यह कहना मेरे लिए सहज और सरल होगा।  उसी क्रम में ‘सवाल और सरोकार’ उनकी रोचक और चुटीली समसामयिक टिप्पणियों का तीसरा संग्रह है। जैसा कि जगत व्याप्त है  कि आप देश की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक और धार्मिक स्थितियों पर  टिप्पणी लिखने में  कुशल हैं। आपकी इस पुस्तक  सवाल और सरोकार भी इन्हीं में से एक है। जिसमे 60 संक्षिप्तसारगर्भित एवं रोचक समसामयिक संपादकीयों को आपने सद्यप्रकाशित पुस्तक ‘सवाल और सरोकार’ (2020) में रखा है। 

            प्रसिद्ध तेवरीकारकवि,  आलोचक और पत्रकार ऋषभदेव शर्मा की दैनिक संपादकीय टिप्पणियाँ पिछले कुछ वर्षों में काफी लोकप्रिय होकर कई अलग-अलग संकलनों के रूप में चुकी हैं। ऋषभदेव शर्मा के संपादकीयों में कहीं भी उबाऊपन नहीं होता। पठनीयता उनका विशेष गुण है। समाचार पत्र में प्रकाशित संपादकीय को पढ़ने और पुस्तकाकार  प्रकाशित संपादकीय को पढ़ने का अनुभव अलग-अलग होता  है। क्योंकि अब ये तात्कालिकता की सीमा पारकर अपनी उत्तरजीविता सिद्ध करते हैं। इससे पहले प्रकाशित उनके संपादकीयों के दो संकलन ‘संपादकीयम्’ (2019) और ‘समकाल से मुठभेड़’ (2019) की काफी चर्चा हुई है।

            यह पुस्तक कुल आठ खंडों में लिखी गई है किसी खंड में आठ किसी खंड में दस तो किसी खंड में दो ही  कुल मिलाकर यह औसत आलेख लिए जाएं तो औसतन सात से आठ आलेख प्रत्येक खंड में हम सहजता से ले सकते हैं प्रत्येक खंड में कुछ ना कुछ विशेष बात कही है

खंड 1  जिसका नाम सियासत की विसात में आठ आलेख लिए गए हैं

उपराष्ट्रपति की पाठशाला , सभ्यता सार्वजनिक जीवन में, आरक्षण की वकालत, है तो सही राजभाषा पर , एक दिन लोकतंत्र का भी, यह इश्क नहीं आसाँ, हिंदू या मुस्लिम की एहसासत  मत छेड़िए, ये खतरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली।

            प्रत्येक आलेखों पर आपने समाज में चल रही बुराइयां धार्मिक सामाजिक राजनैतिक लोकतांत्रिक परिस्थितियों पर सब कुशल व्यंगात्मक टिप्पणी की है इसमें मुझे राजनीति पर जो आपने टिप्पणी की है उपराष्ट्रपति की पाठशाला  इसमें एक शिक्षक होने के नाते यह आभास होता है कि आज के बच्चों को शिक्षा कहाँ से मिल रही है जब सांसद , विधायक लोकसभा तथा राज्यसभा  , विधानसभा में ऐसी उद्दंडता करते हैं तो निसंदेह आने वाली पीढ़ी के छात्र और अधिक उद्दंड होंगे आपने अपने व्यंगात्मक शब्दों से उपराष्ट्रपति को शिक्षक तथा सभी उपस्थित सदस्यों को छात्रों की उपमा दी है। आपका कथन सत्य प्रतिशत सत्य है।

            2 सितंबर 2019 को हिंदी डेली हिंदी मिलाप समाचार पत्र में प्रकाशित एक टिप्पणी सभ्यता सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए इसमें आपने बखूबी अपने कौशल को अंकित किया है सच है की सभ्यता सार्वजनिक रूप से आवश्यक है चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए सभी धर्म सभी संप्रदाय तथा सभी जाति के समस्त लोगों को एक दूसरे के मत संप्रदाय जाति का स्वागत करना चाहिए उनके विचारों पर चिंतन मनन करना चाहिए ना कि उनका विरोध। यदि वह ऐसा कर सकते हैं तो निश्चित रूप से हमारा देश एक अखंड भारत बनकर खड़ा होगा।

आपकी अगली आलेख में आपने आरक्षण पर टिप्पणी की है और आपका मानना यह है कि आरक्षण की आवश्यकता अब नहीं रही उसे खत्म कर देना चाहिए।

            हिंदी दिवस के उपलक्ष में आपके द्वारा लिखा गया एक आलेख राजभाषा के बारे में यह शत प्रतिशत सत्य है कि हिंदी हमारे भारत की राजभाषा है और होते हुए भी नहीं है क्योंकि राजभाषा का अर्थ यह है राजकाज में प्रयोग की जाने वाली भाषा और आधुनिक समय में अंग्रेजी का वर्चस्व इतना प्रभावी हो गया है कि देश की जनसंख्या का 55% भाग अंग्रेजी में वार्तालाप लेखन कार्य एवं संवाद , पत्राचार  इत्यादि करते हैं इसलिए राजभाषा होते हुए भी हिंदी राजभाषा नहीं रही।

            एक दिन लोकतंत्र का भी इसमें आपने लोकतंत्र पर प्रहार करते हुए लिखा है कि लोकतंत्र में भी हमें निज कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए निज कार्य करने चाहिए।

महाराष्ट्र की राजधानी पर आपने ठाकरे साहब पर व्यंग करते हुए लिखा है कि ठाकरे साहब को यह ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है कि तीन बूढ़े शेरों से एक युवा शेर के मध्य तकरार ना हो सभी के विचार एक दूसरे से मिलते रहें यह हृदय को छूने वाली बात आपने लिखी है।

            कश्मीर पर भी आपने बहुत ही खूबसूरत टिप्पणी की है कश्मीर तो बस बहाना है कश्मीर के बारे में पुरानी मुगल सम्राट ने कहा था कि यदि स्वर्ग कहीं है तो वो यहीं है यहीं है यहीं है। आपने अपने आलेख में भी यही कहना चाहा है वहां पर शांति तथा प्रगति होनी चाहिए ना की अराजकता तथा अशांति।

पाकिस्तान पर भी आपने काफी हद तक व्यंगात्मक एवं प्रेरणात्मक टिप्पणियां की हैं जो कि पाठक के मन को अहला दित करती हैं एवं उनके फतेह को छूकर उन्हें जय आवास दिलाती हैं कि नफरत हमें केवल और केवल अशांति के मार्ग पर चलना सिखाती है ना कि शांति और सौहार्द के मार्ग पर।

हमें शांति और सौहार्द के मार्ग पर चलना है तो हमें अपने हृदय से मन से यह एक दूसरे के प्रति नकारात्मक भावनाओं को निकाल फेंकना होगा।

            लोक और तंत्र दो शब्द मिलकर लोकतंत्र बनाते हैं जिस पर आपने काफी हद तक 5 से अधिक टिप्पणियां देखें जिसमें आपने लोग और तंत्र के मध्य संबंध स्थापित ना हो पाने की बातों को व्यंगात्मक रूप दिया है जहां एक तरफ प्रहरी प्रशासन तथा दूसरी तरफ अधिवक्ताओं को आमने सामने रखा आप ने लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की बहुत अच्छे विचार व्यक्त किया है जिस पर आपने बताया है कि अराजकता ही यह प्रमुख कारण है जब लोकतंत्र भीड़ तंत्र में परिवर्तित हो जाता है इस चर्चा पर आपने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का नाम उल्लेखित किया तथा एक विश्वविद्यालय में हुई है उस  महिला प्रोफेसर के बारे में भी अपने उल्लेखित किया जिन्हें अपमानित  तथाकथित छात्रों ने किया था  , एक प्राध्यापक के प्रति शिक्षा के मंदिर में ही दुर्व्यवहार किया गया था यह एक निंदनीय कुकृत्य रहा।

            जनता और सत्ता दुश्मन है क्या इस टिप्पणी पर आपने सत्ता को जनता के तथा जनता को सत्ता के विरोधी होने पर आपने विचार व्यक्त किए हैं जिस पर आपने यह बहुत अच्छी तरीके से आपने लिखा कि जनता और सत्ता दोनों परस्पर एक दूसरे  संपूरक है एक दूसरे के बिना और दूसरा पहले के बिना पूर्ण नहीं है किंतु ऐसी हीन भावना कब तक चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। 2019 में बनाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम पर भी आपने अपनी व्यंगात्मक टिप्पणी दी है और अपनी यह बताया कि इससे सत्ताधारी तथा सत्ताधारी दोनों ही लोग अराजकता फैलाने के लिए दोषी हैं इसे हम अराजकता कहे या आंदोलन यह कहना थोड़ा कठिन कार्य होगा क्योंकि असत्ताधारी आंदोलन का नाम देते हैं तथा सत्ताधारी अराजकता कहते हैं।

          हैदराबाद में पशु चिकित्सक डॉ प्रियंका रेड्डी के केस में भी आपने अपने कागज को स्याहीमय किया और न्याय व्यवस्था  को तत्काल न्याय के बारे में आपने लिखा  विभत्स हत्याकांड का तुरंत न्याय मिला।

आपने ऐसे दुष्कर्म का दोषी न्याय व्यवस्था तथा पुलिस प्रशासन को माना है आपकी एक ही टिप्पणियां बहुत अधिक ज्ञानवर्धक कथा पाठक के हृदय को रचित करने वाली है कहीं-कहीं पर पाठक पढ़कर उत्साहित हो जाता है कहीं वह वीर रस से रचित हो जाता है कहीं करुण के भाव उत्पन्न होते है ,तो कहीं मानव हृदय विभत्स हो जाता है ।

सोशल मीडिया का जितना सदुपयोग होना चाहिए वह नहीं हो पा रहा किंतु इसके विप्रा अर्थ सोशल मीडिया का दुरुपयोग काफी हद तक किया जा रहा है जिसमें एक दूसरे के प्रति नफरत ,अभद्रता, अश्लीलता , भय और आतंक  फैलाने का काम भी इसी सोशल मीडिया का है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि आप मनमर्जी करें अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ यह है कि आप स्वतंत्र रूप से बोल सकें किंतु आपके शब्दों में मृदुलता एकता अखंडता एवं सामाजिक सद्भावना होनी चाहिए।


---------------------------


पुस्तक -सवाल और सरोकार

लेखक- प्रो. ऋषभ देव शर्मा

विधा -समसामयिक टिप्पणियाँ

प्रकाशन- परिलेख प्रकाशन (उत्तर प्रदेश)

वितरक : श्रीसाहिती प्रकाशनहैदराबादमो. 9849986346

संस्करण : 2020

मूल्य- ₹140/-

पृष्ठ -132

आईएसबीएन  :  978-93-84068-96-7

----------------------------------------

 

समीक्षक-

आचार्य प्रताप
प्रबन्ध निदेशक

अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचर पत्रम्

अणुड़ाक-acharypratap@outlook.com

संपर्कसूत्र- +91-8121-487-232




1 टिप्पणी:

  1. आभारी हूँ।
    आपने पूरी पुस्तक का धैर्यपूर्वक पारायण करके यह गंभीर, रोचक और विद्वत्तापूर्ण समीक्षा लिखी है। एक लेखक के नाते मेरे लिए यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है। पुनः आभार!💐

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं