दोहावली- दोहा द्वादशी

दोहे 
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शुभम लंबोदर गणपति, मंगलमूर्ति गणेश।
मोदक दाता गजवदन,कहते सब विघ्नेश।।०१।।
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बाल बचा लो बाल से ,  बाल खींचते बाल।
बचा न पाए बाल से, उखड़ गए सब बाल।।०२।।
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गाल लाल हैं लाल के, लाल दिखे अब लाल।
लाल  लाल ही दिख रहा,चोंट लगी जब भाल।।०३।।
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लिये सुराही चल रहा , भरे सुरा ही राह।
चलत सु राही सोचता , जीवन की हर चाह।।०४।।
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सादर नमन "प्रताप" का, स्वीकारें श्रीमान।
करें निरंतर साधना,  जड़मति बनें सुजान।।०५।।
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लाल, लाल के भेद को,  भेदेगा श्रीमान।
रचनाएं अरु पटल का, करे सदा सम्मान।।०६।।
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बात-बात में सच कहा,  दिया सही उपदेश।
ज्ञानी जग आराध्य हो, ज्ञान बिना हो क्लेश।।०७।।
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तीर , तीर को भेद कर , जा पहुँचा  पर - तीर।
नयन तीर के पीर को , समझ  न  पाया  वीर।।०८।।
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तीर हृदय को चीर कर , जा पहुँच पर तीर।
दो हृदयों के मेल को , रोंक न पाएँ वीर।।०९।।
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भ्रमर घुमड़ते दिख रहे , पुष्प-पुष्प पर यार।
मधुकर मधुरस ले रहे , कुसुम-कुसुम का सार।।१०।।
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 भ्रमर घुमड़कर ले रहे , पुष्प-पुष्प का सार।
मधुकर मधुरस ले नहीं, कुसुम व्यर्थ हो यार।।११।।
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भ्रमर-भ्रमर हैं बाल सम, बाला  एक  प्रसून।
कुसुम-कुसुम की गंध तो , पृथक-पृथक मजमून।।१२।।
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आचार्य प्रताप
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

3 Commentaires

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  1. प्रणाम आचार्य जी।

    बहुत सुंदर दोहों की रचना की है आपने।
    ढेर सारी बधाईयाँ आपको।

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    1. प्रशंसत्मक टिप्पणी के लिए आभार।
      आदरणीय शक्तिराज जी।
      बहुत बहुत प्रणाम आपको भी।
      ।।शुभमस्तु।।

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