॥तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु॥
काव्यमेघ, अश्वमेघ गोमेघ नरामेघ राजसूय साहित्यमेघ की तरह राष्ट्र , धरणी, नर और साहित्य के विस्तार का एक प्रयास है। काव्य वह जो न कभी मरता है और न कभी बूढ़ा होता है अर्थत काव्य अजर-अमर होता है। वह हमेशा समसामयिक रहता है। इस सृष्टि में कुछ तत्व ऐसे भी है जो आदिकाल से अब तक उतने ही प्रभावी हैं जितने की आदि मे थे जैसे वेद आज भी मानव को मानव बने रहने की प्रेरणा देते हैं।वेद ईश्वर का श्रव्य काव्य है यह संसार दृश्यकाव्य, जो निरंतर नूतन बना रहता है।
॥नान्या पंथा विद्धतेऽयनाय॥ (इसके आलावा दूसरा कोई मार्ग भी नहीं।)
किंतु -
तुलसी मीरा वृंद कबीरा , सूर बिहारी – वाणी है।
हिंदी मेरे हिंद देश की , भाषा इक कल्याणी है।
सत्य निष्ठ उत्कृष्ट यही है ,सुनें यही कविवाणी है।
अर्पण तर्पण और समर्पण ,कहते सब सुरवाणी है ।
दिनकर पंत निराला कह रसखान हमारी हिंदी है।
रहे सदा अभिमान हमें पहचान हमारी हिंदी है ।।
-आचार्य प्रताप
अत्यंत हर्ष हो रहा है और मैं आपको बधाई देता हूं कि काव्य-निहारिका नाम से एक साझा-संकलन का प्रकाशन साहित्यदीप के संस्थापक और संचालक मेरे प्रिय अनुज पं. गोपाल तिवारी ‘अज्ञात’ के द्वारा किया जा रहा है जिसकी सूचना उनके द्वारा मुझे सोशल-नेटवर्क के द्वारा प्रेषित की गई। जिसे पढ़ कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस “काव्य-निहारिका” साझा-संकलन को सुंदर सुसज्जित कर आकर्षक और मनोरम बनाए एवं विषय , वैदिकता तथा छंदों के अनूठे संग्रह हेतु जिन रचनाओं का चयन किया गया है वह वास्तव में अनुपम और प्रशंसनीय कार्य है। इसके लिए मैं संपादक को हार्दिक बधाई और आशीष प्रदान करता हूँ। साझा-संकलन का प्रकाशन निश्चित रूप से एक अत्यंत सराहनीय प्रयास होगा। इस युवा एवं प्रतिभा के धनी संपादक ‘अज्ञात’ के द्वारा “काव्य-निहारिका” साझा-संकलन के माध्यम से पाठकों के बीच न केवल एक विशिष्ट पहचान बनाने का सफल प्रयास किया गया है अपितु साहित्य जगत में एक स्तंभ स्थापित करने का सराहनीय कार्य किया जा रहा है। इस सराहनीय कार्य हेतु आनंत शुभकानएँ।
।। असीम और अनंत शुभकामनाओं सहित ।।
शुभेच्छु
आचार्य प्राताप
प्रबन्ध संपादक
अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार-पत्रम् ,
(तेलंगाना व मध्य प्रदेश)
अणुड़ाक - acharypratap@outlook.com
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