परिवार को जोड़ने वाला, खुद बिखर गया — बड़े भाई की व्यथा

आज की इस बदलती दुनिया में आपका कोई भी नहीं है।

माँ-बाप, जिन्हें आप अपना मानते और कहते हैं — विवाह के बाद, वे भी आपको एक चोर के अलावा कुछ नहीं समझते।
भाई-बहन, जिनके भले के लिए आपने अपना अमूल्य जीवन खपा दिया — यह सोचकर कि भाई पढ़ लेगा तो घर मजबूत होगा, बहन पढ़ लेगी तो अच्छे रिश्ते मिलेंगे — वही सब विवाह के बाद आपको स्वार्थी और चोर समझने लगते हैं।

जब आपका विवाह हो जाता है, तो वे आपकी बात तक नहीं सुनते।
आपने उनके लिए सब कुछ किया होता है, फिर भी ताने सुनने को मिलते हैं —
“तुमने हमारे लिए किया ही क्या है?”

सम्मान इतना गिर जाता है कि बातें “आप” से “तुम” तक आ पहुँचती हैं।

यदि गलती से आपकी कोई संतान है, और आप अपने परिवार (माँ, बाप, भाई, बहन) के लिए, अपने नहीं बल्कि घर के भले के लिए, अपनी पत्नी से अलग रह रहे हैं — वह भी तब, जब विवाह को बस एक वर्ष ही हुआ हो और एक नन्ही-सी बच्ची हो जिसे विशेष देखभाल की आवश्यकता हो —
फिर भी आपकी अविवाहित बहन, जो घर पर है, अपनी भाभी और भतीजी की देखरेख के लिए न जाए —
और माँ-बच्ची दोनों हर दिन समस्याओं से जूझती रहें —
तो ऐसे में यदि उस बड़े भाई की कोई न सुने, तो उसके पास क्या उपाय शेष रह जाता है?

मुझे इसका उत्तर नहीं पता।
परंतु आप सब अवश्य लिखें और बताएं।

मैं इतना ही कह सकता हूँ कि जब परिवार ही साथ न दे —
जिस परिवार के लिए बड़े भाई ने अपना जीवन खपा दिया —
तो उस भाई के पास परिवार को एक रखने के लिए मात्र दो ही मार्ग शेष रहते हैं —

पहला, रोज़ गाली-गलौज करो, ताकि डर के कारण परिवार एक बना रहे।
पर यदि आपकी छवि निर्मल है, तो यह मार्ग आप अपना नहीं सकते।

दूसरा मार्ग तब शेष बचता है —
वह है काल का मार्ग

स्वयं को प्रभु के श्रीचरणों में समर्पित कर दो,

तब — ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बाँसुरी।
सारी समस्याओं का तुरंत निदान हो जाएगा।

उस समय यह मत सोचो कि पत्नी का क्या होगा, बेटी का क्या होगा, बहन का विवाह होगा या नहीं,
भाई अपनी प्रेमिका को साथ लेकर रहेगा या माँ-बाप को।

घर में बड़ा भाई होना आज के समय में एक बहुत बड़ा चैलेंज बन गया है।
और परिवार के प्रति निष्ठा व समर्पण भाव से एक सेवक बनकर रहना —
उससे भी कहीं अधिक कठिन।

- आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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