हरिहर वीरमल्लु : धर्मरक्षा और भारतीय गौरव का सजीव चित्रण

हरिहर वीरमल्लु : धर्मरक्षा और भारतीय गौरव का सजीव चित्रण

आचार्य प्रताप 

भारतीय चेतना की सिनेमाई अभिव्यक्ति

भारतीय संस्कृति का इतिहास केवल तिथियों, युद्धों और राजवंशों का लेखा-जोखा नहीं है; वह एक जीवित परम्परा है जहाँ प्रत्येक कथा, प्रत्येक वीर, और प्रत्येक त्यागमूर्ति में धर्म का प्रकाश सन्निहित है। आधुनिक सिनेमाजगत प्रायः इस तेजस्विता को भुला बैठा है, परंतु समय-समय पर कुछ रचनाएँ ऐसी भी होती हैं जो हमें पुनः स्मरण कराती हैं कि भारत केवल भूभाग नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति है।
हरिहर वीरमल्लुइसी श्रेणी का एक प्रेरणादायी चलचित्र है जो मनोरंजन से कहीं अधिक, एक आध्यात्मिक संदेश देता है।

इस चलचित्र में केवल एक योद्धा की गाथा नहीं, अपितु धर्म, राष्ट्र और स्वाभिमान के लिए समर्पित भारतीय आत्मा का घोष है।
नायक हरिहरउस सनातन आदर्श का प्रतीक है, जो अन्याय, अत्याचार और अधर्म के विरुद्ध उठ खड़ा होता है न कि निजी स्वार्थवश, अपितु लोककल्याणवश।

संघर्ष से समरसता तक की यात्रा

फिल्म का परिवेश मध्यकालीन भारत है वह काल जब विदेशी सत्ता और दमनकारी शासन ने भारतीय गौरव को कुचलने का प्रयास किया था।
हरिहर वीरमल्लु एक साधारण जन से आरम्भ होकर धर्मरक्षक नायक बनता है।
उसका चरित्र शौर्य, करुणा, और आत्मबल का अद्भुत समन्वय है।

निर्देशक ने कथा को केवल ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रतीकवाद के साथ प्रस्तुत किया है।
हरिहर का प्रत्येक युद्ध, प्रत्येक निर्णय धर्म की रक्षा के लिए समर्पित है।
वह किसी साम्राज्य का नहीं, बल्कि धर्मराज्य का स्वप्न देखता है।

सनातन तत्वों का सशक्त चित्रण

इस चलचित्र का सर्वाधिक प्रशंसनीय पक्ष है सनातन दर्शन का सजीव प्रस्तुतीकरण
फिल्म के संवाद, दृश्य और प्रसंगों में बार-बार यह अनुभूति होती है कि धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि जीवन की वह नीति है जो न्याय, करुणा और सत्य के आधार पर समाज का मार्गदर्शन करती है।

एक प्रसंग में नायक कहता है

धर्मं न जहाति यो नरः, स एव वीरः।
(
जो धर्म को नहीं छोड़ता, वही सच्चा वीर है।)

यह वाक्य मात्र संवाद नहीं, बल्कि संपूर्ण कथा का सार है।
फिल्म यह प्रतिपादित करती है कि वीरता केवल रणभूमि में तलवार उठाना नहीं, अपितु अधर्म के सामने अडिग रहना है चाहे संसार ही विरोध में क्यों न खड़ा हो।

धर्मरक्षा की भूमिका

फिल्म में धर्म की रक्षा को किसी संकीर्ण मत या पंथ के रूप में नहीं दिखाया गया।
धर्मयहाँ सर्वभूतहिताय का प्रतीक है।
हरिहर जब अत्याचारियों के विरुद्ध खड़ा होता है, तो वह केवल अपने समुदाय के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए युद्ध करता है।

निर्देशक ने अनेक दृश्यों में यह संकेत दिया है कि जब धर्म संकट में पड़ता है, तब हर युग में कोई न कोई हरिहरअवश्य अवतरित होता है जो अधर्म की जड़ें काटकर धर्म के वृक्ष को पुनः पुष्पित करता है।
यह अवधारणा गीता के इस श्लोक का मूर्त रूप है

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत...

हरिहर का जीवन इस श्लोक की व्याख्या बनकर सामने आता है।

भारतीय स्त्री की शक्ति और आदर्श

फिल्म में स्त्री पात्रों का चित्रण विशेष उल्लेखनीय है।
वे केवल सहायक नहीं, बल्कि प्रेरक शक्ति के रूप में प्रस्तुत हैं।
हरिहर की माता, उसकी संगिनी सभी पात्र शक्ति तत्त्व के प्रतीक हैं।
उनके माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि धर्मरक्षा में पुरुष और स्त्री दोनों का समान योगदान है।
जैसे पार्वती शिव की शक्ति हैं, वैसे ही नायक की प्रेरणा भी नारी से ही प्रवाहित होती है।

संस्कृति, कला और प्रतीक

फिल्म के दृश्यांकन में भारतीय स्थापत्य, वस्त्र, संगीत और शिल्प का सौंदर्य अत्यंत मनोहर रूप से दिखाया गया है।
मंदिरों के शिखर, नदियों का प्रवाह, यज्ञाग्नि की लौ सब कुछ एक दिव्यता का आभास कराते हैं।
निर्देशक ने यह दिखाया है कि भारतीय संस्कृति केवल अतीत नहीं, अपितु अनादि और अनन्त है।

वस्त्रों में केसरिया, स्वर्ण, और मिट्टी के रंगों का प्रयोग यह दर्शाता है कि भारत की आत्मा भूमि और अग्नि दोनों से जुड़ी हुई है।
संगीत में शास्त्रीय रागों का प्रयोग फिल्म की आध्यात्मिकता को और गहरा करता है।

अभिनय और पात्रनिर्माण

पवन कल्याण ने हरिहर के रूप में केवल अभिनय नहीं किया उन्होंने उस चरित्र को आत्मसात किया है।
उनकी दृष्टि में तेज है, वाणी में निष्ठा, और शरीर में वही संकल्प जो धर्मवीर में होना चाहिए।
उनका अभिनय हमें पुराणों के उन अमर नायकों की याद दिलाता है जो धर्मो रक्षति रक्षितः के सिद्धांत पर चलकर अमर हुए।

सहायक पात्रों में भी गहराई है।
विरोधी पात्र केवल दुष्ट नहीं, बल्कि वे अधर्म की वे शक्तियाँ हैं जो मनुष्य के भीतर और समाज में निरंतर संघर्षरत रहती हैं।
इस प्रकार, फिल्म केवल बाह्य संघर्ष नहीं, बल्कि अंतरात्मा के युद्ध को भी दर्शाती है।

आध्यात्मिक दर्शन और नायकत्व

हरिहर का नायकत्व केवल शारीरिक शक्ति पर आधारित नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृढ़ता पर टिका है।
वह जानता है कि युद्ध तभी धर्मयुद्ध कहलाता है जब उसमें अहंकार नहीं, बल्कि कर्तव्य का भाव हो।
फिल्म में कई स्थानों पर उसे ध्यान, साधना, और मौन के क्षणों में दिखाया गया है यह संकेत देता है कि वीरता का मूल आत्मसंयम में है।

यही दर्शन गीता में प्रतिपादित है

स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।

हरिहर अपने स्वधर्म का पालन करता है चाहे परिणाम कुछ भी हो।

धर्म ही राष्ट्र का आधार

फिल्म का मूल संदेश अत्यंत स्पष्ट है
यदि धर्म जीवित रहेगा, तभी राष्ट्र जीवित रहेगा।
राज्य, सत्ता, सीमाएँ ये सब परिवर्तनशील हैं; परंतु धर्म वह शक्ति है जो सहस्राब्दियों तक सभ्यता को टिकाए रखती है।
हरिहर वीरमल्लु इस शाश्वत सत्य का दूत है।

यह चलचित्र आज के भारत को यह स्मरण कराता है कि आधुनिकता और आध्यात्मिकता विरोधी नहीं हैं;
बल्कि जब विज्ञान, कला, और संस्कृति धर्म के मूल्यों से जुड़ते हैं, तभी भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है।

धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा का आह्वान

हरिहर वीरमल्लुकेवल एक फ़िल्म नहीं, यह एक आह्वान है
आत्मगौरव, धर्मनिष्ठा, और राष्ट्रीय एकता के पुनर्जागरण का।
यह हमें स्मरण कराती है कि प्रत्येक युग में धर्म की रक्षा केवल राजाओं का नहीं, प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

आचार्य शंकर के शब्दों में

धर्मो ही तस्मात् सर्वं प्रतिष्ठितं।

यदि धर्म रहेगा, तो संस्कृति रहेगी;
संस्कृति रहेगी, तो राष्ट्र अमर रहेगा।

फिल्म का यह उपसंहार उसी अमर सत्य की प्रतिध्वनि है।
हरिहर वीरमल्लु की ज्वाला हमें यह सिखाती है कि सनातन धर्म केवल परंपरा नहीं,
बल्कि मनुष्य के अस्तित्व का प्राण है
जो अन्याय के अंधकार में दीपक बनकर युगों-युगों तक जलता रहेगा।

भारतीय सिनेमाजगत के लिए एक दिशासूचक दीप

आज जब चलचित्र उद्योग प्रायः पश्चिमी प्रभावों और तात्कालिक आकर्षणों में खो गया है,
ऐसे समय में हरिहर वीरमल्लुएक दिशासूचक दीप के समान है।
यह फिल्म दिखाती है कि जब सिनेमा धर्म, संस्कृति और राष्ट्रभावना से जुड़ता है,
तो वह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि संस्कार बन जाता है।

इसलिए कहा जा सकता है
यह चलचित्र केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक युग की पुकार है।
यह स्मरण कराता है कि भारत की आत्मा अब भी जीवित है
और जब तक हरिहरजैसे वीर इस भूमि पर जन्म लेते रहेंगे,
तब तक अधर्म चाहे कितना ही प्रबल क्यों न हो,
सत्य और धर्म की विजय अवश्य होगी।

धर्मो रक्षति रक्षितः” — यही हरिहर वीरमल्लुका शाश्वत संदेश है।

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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