बुधवार, 11 सितंबर 2024

शिव की बारात - घनाक्षरी

घनाक्षरी

गंगा जी को सिर साधे,
वासकि को कंठ बाँधे,
त्रिशूलपाणि संग में 
ही लाए हुए बाराती।

मस्ती में झूम रहे,
ताल पे थिरक रहे,
शिव-शक्ति गीतों पर
छाए हुए बाराती।

चंद्र शीश पर शोभे,
चक्षु त्रय सब लोभे,
कैलाश निवासी साथ
में लाए हुए बाराती।

भारी भक्त भीड़ भरी 
धन्य-धन्य कर कर  
प्रेम-वर्षा कर के 
भिगाए हुए बाराती।।०१।।

तांडव धुन बजती
गणों की टोली सजती
ब्रह्मांड भर उत्सव
मनाय रहे बाराती।

कैलास-हिमाद्रि तक
जयकारे गूँज रहे
बादल आकाश में 
नचाय रहे बाराती।
वाहन हैं बैल-नंदी
संग हैं गणेश वंदी
 भूत-प्रेत संग में 
दिखाय रहे बाराती।

महिमा में महादेव
इंद्र सह सब देव
भस्म से तन सारा
सजाय रहे बाराती।।०२।।

वेद-मंत्र उच्चारण
गूँजता वातावरण
ऋषि-मुनि मिलकर
गाय रहे बाराती।

अप्सराएँ नृत्य करें
किन्नर संगीत भरें 
निज वीणा नारद
बजाय रहे बाराती।

रुद्राक्ष माला धारण 
त्रिपुंड तिलक तारण
भोलेनाथ दर्शन
पाय रहे बाराती।

काशी से केदार तक
नमः शिवाय की धाक, 
शिव-शक्ति मेल पर 
झूम रहे बाराती।।०३।।

चंदन की गंध फैली
मंदाकिनी धार रेली
पुष्प वर्षा करते
सुहाय रहे बाराती।

डफली-मृदंग थाप
मिटा रही सारा ताप
ढोल-नगाड़े धुन
बजाय रहे बाराती।

गण सब मतवाले
भूत-प्रेत भी निराले
प्रकृति-तत्व सारे
सुभाय रहे बाराती।

योगी संत तपस्विन
सिद्ध साधु संन्यासिन 
ज्ञान-ज्योति संग में 
जगाय रहे बाराती।।०४।।

कर्पूर- आरती थाल
महकती सालों साल
भक्ति-द्विप हाथ में 
जलाय रहे बाराती।

शिव-अंब का मिलन 
हर्षे जन गण मन 
आनंद की लहरें
बहाय रहे बाराती।

त्रिलोक में छाई खुशी
मिट गई हर कशी
अमृत सम धारा
बरसाय रहे बाराती।

काल भी थम-सा गया
लगे जग नया-नया 
अद्वैत का संदेश
सुनाय रहे बाराती।।०५।।

आचार्य प्रताप

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