समीक्ष्य कृति: छगन छंद सवैया
समीक्षक:: आचार्य प्रताप
पुस्तक: 'छगन छंद सवैया'
रचनाकार: डॉ छगन लाल गर्ग 'विज्ञ'
प्रकाशक: उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ, उत्तर प्रदेश
मूल्य: 250 रुपये
ISBN 8194942705, 9788194942702
संस्करण: प्रथम, 2020
सिरोही राजस्थान निवासी प्रबुद्ध साहित्यकार डॉ. छगन लाल गर्ग जी की यह काव्य कृति उत्कर्ष प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पाँचवी पुस्तक है इससे पूर्व कवि की चार पुस्तकें उत्कर्ष प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें मदांध मन, रंजन रस, तथाता और विज्ञ छंद कुण्डलियाँ शामिल हैं। कवि की अभी तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं .
हिंदी साहित्य के विशाल आकाश में एक नया नक्षत्र उदित हुआ है - डॉ छगन लाल गर्ग 'विज्ञ' की कृति 'छगन छंद सवैया'। यह पुस्तक न केवल एक काव्य संग्रह है, बल्कि सवैया छंद की विविध शैलियों का एक समृद्ध कोष भी है। इस समीक्षा में हम इस अद्वितीय कृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे और इसके महत्व को समझने का प्रयास करेंगे।
डॉ गर्ग ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा हिंदी साहित्य, विशेषकर काव्य के क्षेत्र में समर्पित किया है। उनकी यह कृति उनके दीर्घकालीन अनुभव और गहन अध्ययन का परिणाम है। 'छगन छंद सवैया' में उन्होंने न केवल अपनी काव्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, बल्कि सवैया छंद के विभिन्न रूपों को एक साथ प्रस्तुत करके हिंदी काव्यशास्त्र को एक अनमोल उपहार दिया है। इस कृति की भूमिका आदरणीय शैलेन्द्र खरे सोम जी ने लिखा है कि अन्य विद्वानों ने शुभकामना संदेश दिए हैं।
'छगन छंद सवैया' में सवैया छंद की 13 विभिन्न शैलियों का प्रयोग किया गया है। प्रत्येक शैली की अपनी विशिष्ट लय, मात्रा और संरचना है, जिसे लेखक ने बड़ी कुशलता से निभाया है। इन शैलियों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है:
1. दुर्मिल सवैया(24 वर्ण): इसमें 7 सगण होते हैं। यह शैली अपनी गतिशीलता और लयात्मकता के लिए जानी जाती है।
2. मतगयंद सवैया (23 वर्ण): इसमें 7 भगण और 2 गुरु होते हैं। यह शैली अपनी गंभीरता और गरिमा के लिए प्रसिद्ध है।
3. गंगोदक सवैया (24 वर्ण): इसमें 8 रगण होते हैं। इसकी लय गंगा के प्रवाह की तरह मधुर और निरंतर होती है।
4. मानिनी सवैया (23 वर्ण): इसमें 7 जगण और एक लघु-गुरु होता है। यह शैली भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।
5. महाभुजंगप्रयात सवैया (24 वर्ण): इसमें 8 यगण होते हैं। यह शैली अपनी तीव्र गति और प्रभावशाली ध्वनि के लिए जानी जाती है।
6. सुखी सवैया (26 वर्ण): इसमें 8 सगण और 2 लघु होते हैं। यह शैली सुखद और आनंददायक भावों की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त है।
7. अरविंद सवैया (25 वर्ण): इसमें 8 सगण और 1 लघु होता है। इसकी संरचना कमल के पत्तों की तरह सुंदर और संतुलित होती है।
8. अरसात सवैया (24 वर्ण): इसमें 7 भगण और 1 रगण होता है। यह शैली अपनी विविधता और लचीलेपन के लिए जानी जाती है।
9. किरीट सवैया (24 वर्ण): इसमें 8 भगण होते हैं। यह शैली अपनी राजसी गरिमा और प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है।
10. सुमुखी सवैया (23 वर्ण): इसमें 7 जगण और एक लघु-गुरु होता है। यह शैली सौंदर्य और माधुर्य की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त है।
11. मदिरा सवैया (22 वर्ण): इसमें 7 भगण और 1 गुरु होता है। इसकी लय मादक और मोहक होती है।
12. वाम सवैया (24 वर्ण): इसमें 8 जगण होते हैं। यह शैली अपनी विशिष्टता और आकर्षण के लिए जानी जाती है।
13. मुक्तहरा सवैया (24 वर्ण): इसमें 8 जगण होते हैं। यह शैली स्वतंत्र और मुक्त भावों की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त है।
इन विविध शैलियों का प्रयोग पुस्तक को एक समृद्ध और विविधतापूर्ण बनाता है, जो पाठक को छंदशास्त्र की गहराइयों में ले जाता है। डॉ गर्ग ने प्रत्येक शैली के साथ न्याय किया है, उनकी विशिष्टताओं को बनाए रखते हुए अपने भावों और विचारों को सशक्त ढंग से व्यक्त किया है।
'छगन छंद सवैया' में निहित काव्य विविध विषयों को समेटे हुए है। लेखक ने अध्यात्म, प्रकृति, गुरु भक्ति, और समाज के विभिन्न पहलुओं को अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
अध्यात्म दर्शन: कवि ने गहन आध्यात्मिक अनुभूतियों को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाओं में ईश्वर के प्रति समर्पण, आत्मा-परमात्मा के संबंध, और जीवन के उच्च लक्ष्यों की खोज का भाव स्पष्ट रूप से झलकता है।
प्रकृति चित्रण: प्राकृतिक सौंदर्य का जीवंत और मनोहारी वर्णन पाठक को मंत्रमुग्ध कर देता है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों - चाँदनी रात, बहता नदी, खिले फूल - का चित्रण बड़ी कुशलता से किया है।
गुरु भक्ति: गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा और समर्पण की भावना कविताओं में स्पष्ट झलकती है। कवि ने गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए उनके महत्व को रेखांकित किया है।
सामाजिक चेतना: समाज के विभिन्न वर्गों और उनकी समस्याओं पर कवि की पैनी नज़र है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, असमानता, और अन्याय पर कटाक्ष किया है, साथ ही सामाजिक एकता और मानवीय मूल्यों की महत्ता को रेखांकित किया है।
डॉ गर्ग की भाषा परिष्कृत और समृद्ध है। वे जटिल विचारों को भी सरल और सुबोध भाषा में व्यक्त करने में सफल रहे हैं। उनकी शब्द चयन की क्षमता प्रशंसनीय है, जो कविताओं को एक विशिष्ट लय और संगीतात्मकता प्रदान करती है।
उनकी भाषा में तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। जहाँ एक ओर वे 'चेतन', 'निर्गुण', 'निराकार' जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहीं दूसरी ओर 'चाँदनी', 'हरियाली', 'नाड़ी' जैसे तद्भव शब्दों का भी कुशलतापूर्वक उपयोग करते हैं। यह मिश्रण उनकी भाषा को समृद्ध और प्रभावशाली बनाता है।
अलंकारों का प्रयोग भी उल्लेखनीय है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा जैसे अलंकारों का कुशल प्रयोग कविताओं को और अधिक प्रभावशाली बनाता है।
आचार्य प्रताप
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