बुधवार, 11 सितंबर 2024

मेरी बगिया के फूल पुस्तक की समीक्षा

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक:: 'मेरी बगिया के फूल' 
रचनाकार:: आचार्य प्रताप
मूल्य:: १९९
प्रकाशक :: Book clinic Publisher, Bilaspur Chhattisgarh
आई एस बी एन (ISBN) : 978-93-5426-001-8
पुस्तक समीक्षक:: शास्त्री रेखा सिंह जयशूर

श्री हरिः 

काव्यसङ्ग्रहोऽयं "मम उद्यानस्य पुष्पाणि" (मेरी बगिया के फूल) इति नामधेयः।
आचार्यप्रतापस्य कृतिरेषा बहुविधविषयैः समलङ्कृता।
छन्दोविधानं काव्यशिल्पं च प्राचीनाधुनिकयोः समन्वयम्।
सांस्कृतिकमूल्यानां सामाजिकचेतनायाश्च प्रतिबिम्बं दृश्यते।

प्रकृतेः सौन्दर्यं मानवजीवनस्य च प्रतिबिम्बम्।
अध्यात्मं लोकतन्त्रं च समकालीनविषयाश्च समाहिताः।
पौराणिककथानां नूतनव्याख्या दृश्यते कृतौ।
शिक्षामूल्यानि नैतिकतत्त्वानि च काव्येऽस्मिन् प्रकाशन्ते।

"मेरी बगिया के फूल" नामक काव्य-संग्रह का यह विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इस काव्य संग्रह से प्राप्त रचनाओं के आधार पर, मैं इसके गहन विवेचन को आपके समक्ष रखती हूँ।

विषय वैविध्य एवं सांस्कृतिक समन्वय: इस काव्य-संग्रह में विषयों का अद्भुत वैविध्य दृष्टिगोचर होता है। यह वैविध्य न केवल विषयों की विस्तृत श्रृंखला में परिलक्षित होता है, अपितु भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों के सुंदर समन्वय में भी। "श्रीगणेशाय नमः" एवं "नमामि मातु शारदे" जैसी रचनाएँ भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की ओर संकेत करती हैं, जबकि "दोहा वाणी वंदना" एवं "श्रीराम" हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति आचार्य प्रताप के गहन आदर को प्रदर्शित करती हैं। साथ ही, "आधुनिक जीवनशैली" एवं "मतदाता और मतदान" जैसे शीर्षक वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर उनकी पैनी नज़र का परिचय देते हैं।

छंद-विधान एवं काव्य-शिल्प: संग्रह में छंदों के प्रयोग की बहुलता विशेष ध्यान आकर्षित करती है। "कुंडलिनी-छंद", "चौपाई छंद", "गीता-छंद", "भुजंग प्रयात - छंद" इत्यादि शीर्षक यह प्रमाणित करते हैं कि अग्रज भ्राता श्री न केवल पारंपरिक छंद-विधान में निपुण हैं, अपितु उन्होंने इन छंदों को आधुनिक संदर्भों में भी सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया है। यह काव्य-परंपरा के प्रति सम्मान एवं नवीनता के प्रति उत्साह का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।

प्रकृति-चित्रण एवं ऋतु-वैभव: "मेरी बगिया के फूल" शीर्षक स्वयं में प्रकृति के प्रति कवि प्रताप के प्रेम को व्यक्त करता है। "ऋतु-बसंत" जैसी रचनाएँ ऋतु-चक्र के साथ मानव-जीवन के सामंजस्य को रेखांकित करती प्रतीत होती हैं। यह संभवतः उनकी उस दृष्टि को प्रकट करता है जो प्रकृति में मानव-जीवन के उत्थान-पतन, हर्ष-विषाद का प्रतिबिंब देखती है।

शैक्षिक एवं नैतिक मूल्य: "बालक शिक्षा" एवं "विद्यार्थी और परीक्षा" जैसे शीर्षक यह संकेत देते हैं कि आचार्य प्रताप ने शिक्षा के महत्व और युवा पीढ़ी के उत्थान पर विशेष ध्यान दिया है। ये रचनाएँ संभवतः न केवल शैक्षिक महत्व की हैं, अपितु समाज में नैतिक मूल्यों के संवर्धन का माध्यम भी बन सकती हैं।

भावात्मक गहनता एवं वैयक्तिक अनुभूति: "विरह-मनुहार" एवं "यादें" जैसी रचनाएँ उनकी भावात्मक गहनता को प्रकट करती हैं। ये शीर्षक यह संकेत देते हैं कि अग्रज भ्राता श्री ने व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं को भी काव्य का विषय बनाया है, जो पाठकों को भावात्मक स्तर पर जोड़ने में सक्षम हो सकता है।

सामाजिक चेतना एवं राष्ट्रीय भावना: "मतदाता और मतदान" जैसी रचना लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नागरिकों की भूमिका पर प्रकाश डालती प्रतीत होती है। यह उनकी सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय भावना को उजागर करती है, जो आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण है।

पौराणिक संदर्भ एवं आधुनिक दृष्टिकोण: "एक दृश्य - रामायण से" शीर्षक यह दर्शाता है कि कवि प्रताप ने पौराणिक कथाओं को आधुनिक संदर्भ में पुनर्व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। यह परंपरा और आधुनिकता के मध्य सेतु निर्माण का सराहनीय प्रयास प्रतीत होता है।

संरचनात्मक सौंदर्य एवं काव्य-कौशल: रचानाओं से स्पष्ट होता है कि संग्रह में विभिन्न काव्य-रूपों का प्रयोग हुआ है। "दोहा", "छंद", "गीत", "गज़ल" इत्यादि का समावेश आचार्य प्रताप के बहुआयामी काव्य-कौशल को प्रदर्शित करता है।

"मेरी बगिया के फूल" एक ऐसा काव्य-संग्रह प्रतीत होता है, जो भारतीय काव्य-परंपरा की समृद्ध विरासत को आधुनिक संवेदनाओं के साथ जोड़ता है। यह संग्रह न केवल साहित्यिक मूल्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, अपितु सामाजिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्धन में भी योगदान दे सकता है। अग्रज भ्राता श्री ने परंपरा और आधुनिकता, व्यक्तिगत और सामाजिक, आध्यात्मिक और भौतिक के मध्य एक सुंदर संतुलन स्थापित किया प्रतीत होता है। यह संग्रह निश्चय ही हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान सिद्ध हो सकता है।

काव्यं प्रतापस्य सुगीतमाला
प्राचीननूत्नं परिपोषयन्ती।
संस्कृत्युद्धारं समाजचिन्तां
वहन्ति पुष्पाणि मनोहराणि॥
छन्दोविधानं शिल्पसौष्ठवं च
प्रकृतिवर्णनं जीवनानुभूतिः।
शिक्षामूल्यानि लोकतन्त्रचिन्ता
काव्येऽत्र सर्वं सुसमन्वितं हि॥

आप सभी को इस काव्य संग्रह को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
पुस्तक अमेज़न स्टोर एवं किंडल संस्करण में भी उपलब्ध है।

पुस्तक समीक्षक
शास्त्री रेखा सिंह जयशूर 
शोध छात्रा:: महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जयिनी ,मध्यप्रदेश

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