सोमवार, 29 मार्च 2021

जोगिरा सारारारारा जोगिरा सारारारारा होली दोहे

#दोहे

जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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नयन सरोवर सम प्रिये , रक्तिम अधर कपोल। 
केश सुसज्जित देखकर , मन जाता है डोल।।०१।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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मृगनयनी मीन-आक्षी , मंजु मयूरी चाल।
रंगों के इस पर्व पर  , रँग दूँगा अब गाल ।।०२।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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आज #होलिका‌ दह रही , #होली_का है पर्व।
हमें भक्त प्रहलाद की ,  भक्ति पर है गर्व।।०३।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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राजनीति किस ढंग की ,  करते चौकीदार ।
मोदी-मोदी  ही  करें , जनता आज  पुकार।।०४।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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मन मर्जी लिखते सभी , अपने सकल विधान।
भाव -  शिल्प  के  ज्ञान  से ,  रहते  ये अंजान।।०५।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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जन-गण होली खेलते , लेकर रंग गुलाल।
युगों-युगों से चल रही , यही प्रथा गोपाल।।०६।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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मिटे धारा से ईर्ष्या , अनाचार व्यभिचार।
मन तन हर्षित कर रहा , रंगों का त्यौहार।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 

आचार्य प्रताप

शनिवार, 27 मार्च 2021

होली मिलन समारोह-2

आज के कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध समीक्षक  साहित्यकार आद. दादा श्री #गिरेंद्र_सिंह_भदौरिया '#प्राण' जी की उपस्थिति में  झुनझुन , राजस्थान के प्राध्यापक तथा प्राच्य विभाग के शोध-निदेशक #डॉ_सूर्य_नारायण_गौतम जी  सहित  , जयपुर से #सलोनी_क्षितिज जी , #डॉ_पूजा_मिश्रा_आशना' जी  सभी ने एक से बढ़कर एक होली की रचनाओं का पाठ किया।
दादाश्री #प्राण जी ने अतिन्यून समय में अक्षरवाणी काव्य-मंजरी  के निवेदन को स्वीकार कार अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्रम्  को अनुग्रहित किया वहीं पर डॉ. गौतम जी ने भी न्यून समय में ही निवेदन को स्वीकारा जिसके लिए हम सदा आपके आभारी रहेंगे
कार्यक्रम में रंगारंग समारोह में अद्भुत और सुंदरतम् होली की रचनाओं का सभी ने  उत्कृष्ट प्रस्तुति दी।
जिसमें  संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र भुवन वशिष्ठ जी ने मंगलाचरणम् के माध्यम से साहित्यिक यज्ञकुंड में अग्निहोत्र की तत्पश्चात् डॉ आशना जी ने वाणी की अधिष्ठात्री देवी माँ वीणापाणि की वंदना अपने कोठिल-कंठ के मध्यम से मधुरतम् प्रस्तुति दी तब जाकर माँ वीणापाणि ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में सहयोग किया।
तब जयपुर से सलोनी क्षितिज जी ने होली की अद्भुत रचना प्रस्तुत करते हुए ब्रज के लाल कन्हैया तथा उनकी गोपियों के रंग खेलने को एक अद्भुत काव्य रूप में सृजित कर हम सब को कर्णप्रिय स्वरों में शब्दामृत बरसाया और हमारे मन-मस्तिष्क को आनंदमयी बना कर आगे बढ़ने का आदेश दिया तब डॉ. आशना जी ने पुनः अपने कोकिलकंठ से होली की रचना जिसमें प्रच्य होली को सवैया छंद तथा कुकुभ ,लावणी , ताटंक छंद में सुनाया और मनविभोर  कर दिया।
होली की विशेषता बताते इस डॉ. गौतम जी ने  हिंदी की सहभाषा बघेली  में अपना काव्यपाठ किया और हमें रसानंद प्रदान किया कार्यक्रम के अंतिम चरण में दादा श्री ने सभी की समीक्षात्मक आशीर्वाद प्रदान किया और अपनी अद्भुत और अविस्मरणीय एकाक्षरी रचना प्रस्तुत की  जो कि संस्कृत के पूर्व विद्वान तथा महाकवि माघ तथा भारवी जी की शिल्पात्मक दृष्टि के समतुल्य  रचना  रखी और अपना परिचय काव्यरूप में प्रदान किया तथा अंत में डॉ. गौतम जी ने कल्याण मंत्र से कार्यक्रम की समाप्ति की , इस समस्त कार्यक्रम को संबोधित और संचालित करने का शुभ अवसर  स्वयं मुझे  प्राप्त हुआ तथा कार्यक्रम की परिकल्पना और योजना सलोनी क्षितिज जी ने बनाई।

सभी के आगमन और अद्भुत प्रस्तुति के लिए  मैं और अक्षरवाणी दोनों सदा ही आभारी रहेंगे।
आप यह कार्यक्रम यहाँ देख सकते हैं।
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https://youtu.be/gKvK8ImkaPM

मंगलवार, 9 मार्च 2021

नारी और वेद

 

नारी शब्द की उत्पति (न + अच् ) ‘नृ’ नर में ई प्रत्यय जोड़ने से हुआ है जो कि यौगिक शब्द है  विभिन्न शब्द शास्त्रियों ने नारी , स्त्री , महिला इन शब्दों को लेकर जो माथापच्ची किया है उन सब में पुरुषवादी पूर्वगृह और पितृसत्ताकत्मक रुझान स्पष्ट दिखतें हैं  यास्क ने अपने निरुक्त में ‘स्त्यै’  धातु से इसकी उत्पति की है  और कहा हैकि – ‘लज्जार्थास्य लाजन्तेपि हि ताः’ जिसका अर्थ है ‘लज्जा से सिकुड़ना’

 

नारी शब्द के अर्थ:

संस्कृत :

१-नारी शब्द न्रि या नर से बना है, यास्क के अनुसार नर का अर्थ है नाचने वाला। पुरुष काम पूर्ति के लिए हाथ पैर नचाता है, इसलिए वह नर है और नर की काम भावना में सहयोगी होने के कारण स्त्री नारी है।

२- स्त्री शब्द स्तये धातु से बना है, जिसका पाणिनि ने अर्थ "शब्द करना" किया है। व्युत्पत्ति कोष के मुताबिक शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध का समुच्चय स्त्री है।

३- मह+इलच+आ =महिला अर्थात पति का सम्मान करने वाली होने के कारण वह महिला है।

अंग्रेजी :

१- वूमन (Woman) शब्द Anglo saxan भाषा से आया है, वहां इसका अर्थ है आदमी की संपत्ति।

२- लेडी (Lady) पहले यह शब्द हाफ ब्रेड के रूप में प्रयुक्त होता था, जिसका अर्थ है, आटा गूंथने वाली। इसी से लेडी शब्द बना है, जो आज सम्मानित स्त्री के लिए प्रयुक्त होता है।

३- मेल Male में फी लगाकर फ़ीमेल शब्द बना है, जिसका अर्थ है पुरुष की।

संसार की किसी भी धर्मिक पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुणगान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं।कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे

 

संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं।कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे।

१. उषा के समान प्रकाशवती-

ऋग्वेद ४/१४/३

हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो। जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।

२.वीरांगना-

यजुर्वेद ५/१०

हे नारी! तू स्वयं को पहचान। तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर। हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।

३.वीर प्रसवा

ऋग्वेद १०/४७/३

राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे

हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो।

४. विद्या अलंकृता

यजुर्वेद २०/८४

विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे। वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे। अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे।

५. स्नेहमयी माँ

अथर्वेद ७/६८/२

हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो। हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो।

६. अन्नपूर्ण

अथर्ववेद ३/२८/४

इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो। इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर। हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया॥

जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

            ऋग्वेद 8/33 में नारी को कहा गया है कि "स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ" अर्थात इस प्रकार से उचित सभ्यता के नियमों का पालन करती हुई नारी निश्चित रूप से ब्रह्मा के पद को पाने योग्य बन सकती है।

विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी,लोपामुद्रा, मैत्रेयी, सिकता, रत्नावली ये समस्त नारी वैदिक युग की विदुषी थीं

शनिवार, 6 मार्च 2021

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ

दोहे

नारी ऊर्जा की कहो, क्या-क्या कह दूँ बात?
नारी नर नारायणी, नारी नर की जात।।०१।।
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नारी के अधिकार में ,  जन गण दिखते साथ।
फिर उनके अधिकार से, नर क्यों करें अनाथ।।०२।।

दुमदार दोहे
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पाना हो यदि प्यार तो, करो प्रशंसा आज।
महिलाओं का साथ हो, सदा करोगे राज।।
यही है अबला नारी।
हुई ये सब पर भारी।०१।।
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नारी शक्ति की तुम्हें, आज सुनाऊँ बात।
कंधों से कंधा मिला ,पुरुषों को दें मात।।
प्रशंसा कर दूँ सारी ।
यही है अबला नारी।।०२।।
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एक मुक्तक

निर्मल स्वच्छ रहे घर-आँगन , निर्मल स्वच्छ विचार।
शिक्षित होगी जब नारी तब , करे प्रगति संसार।
उदय तुम्हीं से  संध्या तुमसे , सेवा जिसका ध्येय-
तू ही दुर्गा,काली भी तू, तू ही अबला नार।


आचार्य प्रताप

बुधवार, 3 मार्च 2021

ऊर्जा प्राप्त करने का मंत्र 'गतिशीलता'

ऊर्जा प्राप्त करने का मंत्र  'गतिशीलता '














गति का अर्थ होता है चलायमान होना , यदि हमारा जीवन चलायमान होगा तो हमारे जीवन में सदैव सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा और जीवन में गति बनी रहेगी।
हमारे जीवन में गति का एक प्रभावी क्रियान्वयन होता है। प्राणी जो गतिमान होते हैं  सदैव उन्नति पथ पर अग्रसर होते हैं विपरीत परिस्थितियों में  गतिमान होते हुए कोई त्रुटि करते हैं तो  उससे एक आवश्यक पाठ मिलता है।
स्थिर जीवन में कुछ न कुछ दोष अवश्य होता है स्थिरता हमारे जीवन को अवसन्न, जड़ या निर्जीव बना देती हैं। इससे हमारे जीवन में होने वाली प्रगति पर विराम चिह्न लग जाते हैं इससे बचने के लिए आवश्यक है हमारे जीवन में गतिमानता का होना। गति हमारे जीवन को चैतन्यता प्रदान करती है जिससे हमारे जीवन में सजीवता आती है और हम स्वयं को सजीव चित्रित करते हैं। यही सजीवता जीवन का आधार बनाकर प्रखर गति प्रदान करती है।
गतिशील  होने से लाभ-
यदि हमारे विचारों में गतिशीलता हो तो हमारी  बौद्धिक क्षमता में श्रीवृद्धि होती है हमारा प्रभाव जग में बढ़ने लगाता है  संसार हमारी बुद्धिमत्ता की सराहना करती है।  चिंतन में गतिशीलता होने पर हम आध्यात्मिक वैभव प्राप्त करते हैं और मन के समस्त विकारों से मुक्त होने के के मार्ग में अग्रसर होने लगते हैं। गतिशीलता  वाणी में हो तो प्रखर वक्ता बनकर समाज में यश की प्राप्ति करते हैं। गतिशीलता सुरों में हो तो सुरसाधक बनकर कीर्तिमान होते हैं , गतिशीलता लेखन में हो तो जग में लेखक या साहित्यकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करतें हैं। गतिशीलता समाज की सेवा में हो तो समाज हमें शीर्ष पर स्थापित कर लेता है  , क्षेत्र कोई भी हो यदि हम गतिशील हैं तो सदैव प्रमुख धारा में रहेंगे । यही गतिशीलता हमें सदैव हमारे आत्मबल को शीर्षस्थ बनाएँ रखता है जीवन में अवसन्नता का प्रमुख कारण है स्थिरता । इसी हेतु मन चिंता और विषाद में घिर जाता है , सोचने और विचारने  की शक्तियों में नकारात्मकता आने लगती है‌।
जग व्याप्त है कि नदियों में निर्मलता भी उनकी गतिशीलता  के कारण ही है जिसके कारण वो पूज्यनीय बनी हुई हैं यदि नदियों की गति शून्य हो जाती है तो नदियां दूषित हो जाएँगी जल प्रदूषित हो जाएगा और प्राणी अस्वस्थ होने लगेंगे , समान रूप से यदि वायु अपने गतिशीलता के गुण को त्याग दे तो कल्पना कीजिए क्या हो सकता है?
पृथ्वी भी गतिशील , शशि - भानु भी गतिशील है जिससे सृष्टि का संचालन हो रहा है तारे और आकाश गंगा की गतिशीलता को भी वैज्ञानिक प्रमाण दे चुकें है,  हम यह कहें कि सृष्टि का संचालन गतिशीलता नामक ऊर्जा से उर्जान्वित  होता है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हमें गतिशीलता के महत्व हो समझना होगा।

जग में हो गतिशीलता , गति परिवर्तन मूल।
गतिमय जीवन हो सदा , बिन गति जीवन शूल।।


                            -आचार्य प्रताप





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