प्रताप सहस्र से 01


*प्रताप - सहस्र से दोहा-द्वादशी*


शुभम लंबोदर गणपति, मंगलमूर्ति गणेश।

मोदक दाता गजवदन,कहते सब विघ्नेश।।०१।।

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बाल बचा लो बाल से , बाल खींचते बाल।

बचा न पाए बाल से, उखड़ गए सब बाल।।०२।।

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गाल लाल हैं लाल के, लाल दिखे अब लाल।

लाल लाल ही दिख रहा,चोंट लगी जब भाल।।०३।।

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लिये सुराही चल रहा , भरे सुरा ही राह।

चलत सु-राही सोचता , जीवन की हर चाह।।०४।।

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सादर नमन प्रताप का, स्वीकारें श्रीमान।

करें निरंतर साधना, जड़मति बनें सुजान।।०५।।

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लाल, लाल के भेद को, भेदूँगा श्रीमान।

रचनाएँ अरु पटल का, करूँ सदा सम्मान।।०६।।

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बात-बात में सच कहा, दिया सही उपदेश।

ज्ञानी जग आराध्य हो, ज्ञान बिना हो क्लेश।।०७।।

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तीर , तीर को भेद कर , जा पहुँचा पर - तीर।

नयन तीर के पीर को , समझ न पाया वीर।।०८।।

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तीर हृदय को चीर कर , जा पहुँच पर तीर।

दो हृदयों के मेल को , रोंक न पाएँ वीर।।०९।।

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भ्रमर घुमड़ते दिख रहे , पुष्प-पुष्प पर यार।

मधुकर मधुरस ले रहे , कुसुम-कुसुम का सार।।१०।।

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भ्रमर घुमड़कर ले रहे , पुष्प-पुष्प का सार।

मधुकर मधुरस ले नहीं, कुसुम व्यर्थ हो यार।।११।।

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भ्रमर-भ्रमर हैं बाल सम, बाला एक प्रसून।

कुसुम-कुसुम की गंध तो , पृथक-पृथक मजमून।।१२।।

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*आचार्य प्रताप*

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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