गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

शीत वर्णन

पञ्चचामर छंद

प्रताप ठंड  है  प्रचंड ,  धुंध  से  भरी धरा ।
रजाइयों  तलें   रहो  , बने  रहो  सदा  हरा।
सदाबहार  गीत  के , प्रवाह  को  सुने सभी।
समीर  के  प्रवाह  से , निहाल हो नहीं कभी।

          वीर  धीर  सिंह - सा , पहाड़ - सा बनें  रहो।
          हिलों  नहीं  डुलों  नहीं , पड़े   रहो  पड़े रहो।
          प्रकार   भिन्न    स्वेटरें ,   परंपरा   बनी   रहे।
          निशा  निशान  चादरें ,  बनी  रहे   लदी  रहें।
         
प्रणाम  शीत को करो , प्रणाम चाय को करो।
विचार मंच   हो  कहीं  , प्रहार शीत  पे  करो।
पकोड़ियां  मिले  अभी ,  शीत  भागती तभी।
नवीन  कार्य  योजना , विचार  ये  करो सभी।

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आचार्य प्रताप

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