पञ्चचामर छंद
प्रताप ठंड है प्रचंड , धुंध से भरी धरा ।
रजाइयों तलें रहो , बने रहो सदा हरा।
सदाबहार गीत के , प्रवाह को सुने सभी।
समीर के प्रवाह से , निहाल हो नहीं कभी।
वीर धीर सिंह - सा , पहाड़ - सा बनें रहो।
हिलों नहीं डुलों नहीं , पड़े रहो पड़े रहो।
प्रकार भिन्न स्वेटरें , परंपरा बनी रहे।
निशा निशान चादरें , बनी रहे लदी रहें।
प्रणाम शीत को करो , प्रणाम चाय को करो।
विचार मंच हो कहीं , प्रहार शीत पे करो।
पकोड़ियां मिले अभी , शीत भागती तभी।
नवीन कार्य योजना , विचार ये करो सभी।
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आचार्य प्रताप
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