नयी तकनीक का, नया-नया है खेल।
भूले अपनों को यहाँ, देख रहे राफेल।।०२।।
------
मुखपोथी में हो रही , चीं-चीं चूँ-चूँ खूब।
पावस ऋतु दिखला रही , फसलें जाती डूब ।।०३।।
-------
शरद आगमन हो रहा, पावस का अब अंत।
इंदु - भानु ही साक्ष हैं, आये फिर हेमंत।।०४।।
------
-आचार्य प्रताप
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं