दोहे

नयी तकनीक का, नया-नया है खेल।

भूले  अपनों  को  यहाँ,  देख   रहे  राफेल।।०२।।

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मुखपोथी  में  हो  रही , चीं-चीं   चूँ-चूँ   खूब।

पावस ऋतु दिखला रही ,  फसलें जाती डूब ।।०३।।

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शरद आगमन हो रहा,  पावस का अब अंत।

इंदु - भानु  ही  साक्ष  हैं, आये  फिर   हेमंत।।०४।।

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-आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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