छंद-२ वसन्ततिलका

वसन्ततिलका


लक्षणम्-ज्ञेया वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।

यस्य चतुर्षु चरणेषु तभजाः तगणः भगणः जगणश्च जगौ जगणश्च गुरुश्च ततो गः गुरुवर्णो भवति, तत् 'वसन्ततिलका' 'वसन्ततिलकं' वा नाम वृत्तं मन्यते।


तगणः  -  ताराज [ऽऽ।]

भगणः  - भानस  [ऽ।।]

जगणः  - जभान [।ऽ।]

जगणः  - जभान [।ऽ।]

गौ   -  गुरुः [ऽ]

गः  - गुरुः [ऽ]





{३+३+३+३+१+१ = (१४)चतुर्दशाक्षरात्मकं वृत्तम्।}


उदाहरणम्  -   

 ऽ ऽ  ।   ऽ  ।  ।   । ऽ   ।    । ऽ ।    ऽ ऽ

चित्रे नि  वेश्य प  रिकल्पि  तसत्त्व  योगा

 ऽ  ऽ  ।    ऽ ।  ।   । ऽ   ।   ।  ऽ   ।    ऽ ऽ

रूपोच्च   येन म   नसा वि  धिना कृ  ता नु ।

ऽ  ऽ ।    ऽ । ।    । ऽ  ।    ।  ऽ ।     ऽ  ऽ

स्त्रीरत्न   सृष्टिर   परा प्र   तिभाति  सा मे 

 ऽ ऽ ।     ऽ । ।    ।  ऽ  ।  । ऽ ।   ऽ  ऽ

धातुर्वि   भुत्वम  नुचिन्त्य  वपुश्च  तस्याः।।


-अभिज्ञानशाकुन्तलम्-महाकविकालिदासः

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

Enregistrer un commentaire

आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं

Plus récente Plus ancienne