छंद- पञ्चचामर छंद
विचार रीति राग रंग राह - राह खोजता।
नवीन छंद लेखनी लिए सदैव जोड़ता।
समान भाव ही रखूँ रहूँ सदा मिला -जुला।
विराट रूप देख लूँ कहाँ नसीब है खुला।
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-आचार्य प्रताप