ईश-दर्शन

 छंद- पञ्चचामर छंद

विचार   रीति   राग   रंग   राह  -  राह  खोजता।
नवीन    छंद    लेखनी    लिए   सदैव   जोड़ता।
समान   भाव   ही  रखूँ   रहूँ  सदा  मिला -जुला।
विराट   रूप   देख   लूँ   कहाँ   नसीब  है  खुला।
-----------
                                                    -आचार्य प्रताप
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं

और नया पुराने