शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

आ जाता शृंगार।

एक गीत-भावों की भाषा में कैसे, 
आ जाता शृंगार।


प्रणय शब्द के सुगम चयन से ,
सृजित सृजन शत् बार।
भावों की भाषा में कैसे, 
आ जाता शृंगार।

मन मधुकर - सा चंचल पावन,
छायावादी दृश्य।
प्रेमिल गंधिल भाषा की हो
तुम अनुवादी दृश्य।

कितना कुछ  दे जाता मुझको,
एक तुम्हारा प्यार।।


सौम्य सरल  है प्रीत प्रियतमे,
सहज सरस  सर साज।
कंगन कलरव कल-कल करते
पायल ध्वनि सुन आज।

अधर मदन में मस्त हो रहें,
पाकर हिय सत्कार।।

प्रतिपल घायल मुझको करते
नयन चलाकर शूल।
मेरी बगिया में खिल जाते ,
रंग बिरंगे फूल।

विह्वल मन तब ही रस पाये,
सुनकर तेरी पुकार।

आचार्य प्रताप

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