दोहे

दोहे 

बहुओं को भी दीजिए , बेटी जैसा प्यार।
भावी पीढ़ी में दिखे , फिर  उनका व्यवहार।।०१।।
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बहू बेटियाँ द्वय करें , निश्चित ही त्रुटि मीत।
एक छपे अखबार में , छिपे अन्य रवि शीत।।०२।।
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जिस घर बहू  का मान हो, बेटी  जैसे आप।
खुशियों की बरसात हो , लिखता सदा प्रताप।।०३।।
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बेटी रज दुख मेरु सम , सुनो जगत का सार।
किंतु बहू बीमार तो , ड्रामा लगता यार।।०४।।
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बेटी जागे नौ बजे, किंतु बहू भिंसार।
बातें बहूरानी सुनें , बेटी पाय दुलार।।०५।।
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बहू की सेवा कीजिए , बुरे वक्त में आप ।
बदलें में दुगुनी मिले , सेवा कहे प्रताप।।०६।।
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गर्भवती यदि है बहू , दें उसको विश्राम।
पहले त्रय-मासिक  उसे , जपने दे बस राम।।०७।।
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आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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