दोहे प्रताप-सहस्र से 02

दोहे

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गुणवत्ता होती नहीं , विनिमय का बाजार।

आश्रित हुआ प्रचार पर , क्रय-विक्रय का सार।।०१।।

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थोथी गुणवत्ता हुई ,  बस प्रचार की आस।

सर्व सफलता के लिए , करते रहे  प्रयास।।०२।।

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गुणवत्ता हो कार्य में , सरस सरल हो भाव।

पाठक दर्शक शेष सब , बैठें एकहि नाव।।०३।।


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गुण-अवगुण जब एक सम , मोल-भाव आधार।

गुणवत्ता  की   नीति  पर  ,  चलता तब संसार।।०४।।

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गुणवत्ता आधार रख , करिए सब उपयोग।

जीवन यह अनमोल है , साँस साँस का योग।।०५।।

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आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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