दोहे
गुणवत्ता होती नहीं , विनिमय का बाजार।
आश्रित हुआ प्रचार पर , क्रय-विक्रय का सार।।०१।।
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थोथी गुणवत्ता हुई , बस प्रचार की आस।
सर्व सफलता के लिए , करते रहे प्रयास।।०२।।
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गुणवत्ता हो कार्य में , सरस सरल हो भाव।
पाठक दर्शक शेष सब , बैठें एकहि नाव।।०३।।
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गुण-अवगुण जब एक सम , मोल-भाव आधार।
गुणवत्ता की नीति पर , चलता तब संसार।।०४।।
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गुणवत्ता आधार रख , करिए सब उपयोग।
जीवन यह अनमोल है , साँस साँस का योग।।०५।।
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आचार्य प्रताप
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