दोहा-गीत शीत वर्णित



शीत लहर लहरा रही ,शीतलता चहुँ ओर।

जीवन के तट पर सखे! , प्रिये कहीं पर-छोर।।
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आगमन ऋतु शीत का है ,शीलत बहे बयार।
तन-मन रोमांचित प्रिये! , करता तेरी पुकार।
कब तक विरहा विरह में , निरखे चंद चकोर।।०१।।


दिनकर तेरी धूप अब , होती जाती मंद।
सर्दी की इस धूप में, पाए सब आनंद।।

सभी खींचते दिख रहे , मृदुल धूप की डोर।।०२।।

कंबल ओढ़े ही रखें ,  स्वेटर पहने आप।
काढ़ा लहसुन हींग सह , उष्ण सलिल लें नाप।

कह प्रताप अविराम यह , सीख बड़ी बरजोर।।०३।।

-आचार्य प्रताप
  प्रबंध निदेशक
  अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्रम्
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

12 Commentaires

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  1. Réponses
    1. नमन श्रद्धेय श्री
      प्रेरक प्रतिक्रिया के के लिए धन्यवाद

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. सारगर्भित और सामयिक दोहे..सुन्दर रचना..।

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    1. बहुत बहुत आभार उत्साहवर्धन हेतु

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  4. बहुत सुंदर दोहा गीत

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    1. धीरतापूर्ण परायण पठन हेतु सधन्यवाद

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  5. हृदयग्राहिणी है यह सीख ... अति सुन्दर ।

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    1. नमन आदरणीया प्रेरक टिप्पणी देकर मनोबल बढ़ाने के लिए धन्यवाद

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