दोहा
हम रटत रहन तुम नटत, पढ़त लिखत अब नाहिं।
पढ़ अगर नहिं सकत अहो,नटत नटत ही जाहिं।।
"प्रताप"
हम रटत रहन तुम नटत, पढ़त लिखत अब नाहिं।
पढ़ अगर नहिं सकत अहो,नटत नटत ही जाहिं।।
"प्रताप"
इसे बनाने का उद्देश्य यह है कि मेरे पाठक मित्र तथा सभी चाहने वाले मुझसे जुड़े रहें और मेरी कविताएँ छंदों के अनुशासन , मेरे अपने विचार, मैं अपने पाठकों तक पहुँचा सकूँ। मेरे द्वारा लिखी गई टिप्पणियाँ, पुस्तकों के बारे में , उनकी समीक्षाएँ , आलोचनाएँ ,समालोचनाएँ तथा छंदों के अनुशासन , मेरे अपने शोध तथा विशेष तौर पर हिंदी भाषा के प्रचार - प्रसार में मेरे द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन मैं इसके माध्यम से अपने मित्रो तक पहुँँचा सकूँ।
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