रविवार, 24 जनवरी 2021

प्रताप-सहस्र से -०३

स्वरचित पुराने दोहों का परिमार्जन पश्चात् प्रेषण एवं संग्रहण
विधा -छंदबद्ध
छंद- दोहा
तिथि- २४-०१-२०२१
दिवस- आदित्यवार
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बे-सबरी  में  थे  दिखे ,  वे-सबरी  के  राम।
बेसब्री  में  खा  गए , जूठन उन्हें प्रणाम।।०१।।
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बिँदिया  दी  भरतार  ने  ,  चिंतन  बारंबार।
माथा  पा  करतार  से  ,  भूली  कैसे  नार?।०२।।
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ऐसे पूतों के लिए , जूता   रखिए   हाथ।
पत्नी के चमचे बने , माता पिताअनाथ।।०३।।
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बहू भली हो आज की , पूत सपूत  कपूत।
जीवन सफल बने तभी , बने कपूत सपूत।।०४।।
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नींव झूठ की हो अगर,बनते नहीं मकान।
ढहना निश्चित हो गया, दे प्रताप यह ज्ञान।।०५।।
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संतों और वसंत के , गुण द्वय एक समान।
जन गण को इक ज्ञान दे , एक प्रकृति दे मान।।०६।।
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मात-पिता से सीख लें , संस्कार  संघर्ष
बाँकी सब जग से मिलें, राग द्वेष सह हर्ष।।०७।।
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कंकर में शंकर दिखें , अंतस मन जब शुद्ध।
वटवृक्ष की छाँव में , मिला ज्ञान ज्यों बुद्ध।।०८।।
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सर्वाधिकार सुरक्षित
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आचार्य प्रताप

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