बुधवार, 11 सितंबर 2024

रास्ता बनकर रहा :: गज़ल संग्रह की समीक्षा

"रास्ता बनकर रहा" गज़ल संग्रह की समीक्षा

समीक्ष्य कृति विवरण
शीर्षक: रास्ता बनकर रहा (गज़ल संग्रह)
गज़लकार : राहुल शिवाय 
प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशन, नवीन दिल्ली
संस्करण: प्रथम (2024)
 मूल्य 249 रूपये (मृदुबंध)

"रास्ता बनकर रहा" एक जनवादी गज़ल संग्रह है। आदरणीय नचिकेता जी के अनुसार, "राहुल शिवाय अपनी गज़लों में केवल यथास्थितिवाद का शोकगीत ही नहीं लिखते और न ही निराशाजनक होकर रिक्त नेत्रों से नभोमंडल की ओर निरीक्षण करते रहते हैं। उनकी वस्तुवादी और अत्यंत सरल गज़लें बहुसंख्यक जनसाधारण को आश्चर्यचकित या स्तब्ध नहीं करतीं, अपितु उन्हें व्याकुल करती हैं, जागृत करती हैं और इन जटिल समस्याओं से मुक्ति पाने हेतु प्रेरित करती हैं तथा कदापि पराजय न स्वीकार करने के उत्साह का संचार भी करती हैं।"

इस गज़ल संग्रह की भूमिका रुड़की (हरिद्वार) निवासी प्रसिद्ध गज़लकार, समीक्षक एवं संपादक श्री के पी अनमोल जी ने लिखी है। वे अपनी भूमिका में लिखते हैं, "राहुल का गज़लकार पक्ष अपने स्वभाव और भाषा के लाक्षणिक प्रयोग के आधार पर भी ध्यान आकर्षित करता है। जहाँ एक ओर इनके पास स्पष्ट और निष्कपट बात करने का साहस है, वहीं दूसरी ओर सुदृढ़ और विशिष्ट भाषाई लाक्षणिक प्रयोग भी है जो इस रचनाकार को अन्य गज़लकारों से पृथक करता है।"

सामाजिक चेतना

राहुल शिवाय जी की गज़लें समाज में व्याप्त विसंगतियों और समस्याओं पर प्रकाश डालती हैं। वे जाति-धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, और रूढ़िवादिता जैसे मुद्दों को उठाते हैं। उदाहरण के लिए:

```
भेड़िये दरवेश बनकर मंदिरों में जा रहे,
क्या नहीं होगा अभी सत्ता बचाने के लिए
```

यह शेर राजनीतिक नेताओं की धार्मिक स्थलों के दुरुपयोग की प्रवृत्ति पर कटाक्ष करता है।

पर्यावरण संरक्षण

कवि पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी रेखांकित करते हैं:

```
न होंगी तितलियाँ, न फूल-फल, न बरसातें 
हमारी चाहतों में गर शजर नहीं होगा
```

यह शेर वृक्षों के महत्व और उनके विनाश के दुष्परिणामों को दर्शाता है।

नारी सशक्तीकरण

राहुल जी नारी सशक्तीकरण के पक्षधर हैं और समाज में बेटियों की स्थिति में सुधार की आवश्यकता पर बल देते हैं:

```
जो भी गिनती कर रहे हैं बेटी की संतान में 
मैं उन्हें ही गिन रहा हूँ आजकल इंसान में
```
ग्रामीण परिवेश का बदलता स्वरूप

कवि ग्रामीण जीवन में आ रहे परिवर्तनों को भी अपनी गज़लों में स्थान देते हैं:

```
चौपालें पढ़ती थीं उनको सुबहो-शाम 
गाँव के कुछ बूढ़े, अखबारों जैसे थे
```

राजनीतिक व्यंग्य

राहुल जी राजनीतिक विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य करते हैं:

```
आज कल जो उड़ रहे हैं रोज़ चार्टर प्लेन से 
वे चुनावी रैलियों में फिर दलित हो जाएँगे
```
राहुल शिवाय जी की भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है। वे तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर समन्वय करते हैं। उनके शेरों में नवीन उपमाएँ और प्रतीक मिलते हैं, जो उनकी रचनाओं को विशिष्टता प्रदान करते हैं।

"रास्ता बनकर रहा" एक महत्वपूर्ण गज़ल संग्रह है जो समकालीन समाज की विसंगतियों और चुनौतियों को प्रस्तुत करता है।राहुल शिवाय जी की गज़लें दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी की परंपरा को आगे बढ़ाती हुई प्रतीत होती हैं। यह संग्रह न केवल पठनीय है, अपितु संग्रहणीय भी है। राहुल शिवाय जी को इस उत्कृष्ट कृति के लिए हार्दिक अभिनंदन।

समीक्षक
आचार्य प्रताप 

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