गुस्ताख़ी माफ़
गाँधी को कहते सब आँधी ,रोक नहीं कोई पाया।
जन-जन जाने जन्में थे वो , दो अक्टूबर जब आया।
अत्याचारी अंग्रेजों से , भारत निर्मल कर डाला।
ऐसे गाँधी बापू तुमको , शब्द गुच्छ की यह माला।
गुजरात का शहर था सुंदर , कैसी प्रभु रचते माया।
पुतलीबाई करमचंद थे , मात-पिता की थी छाया।
दीवान पिता थे करमचंद अरु , धर्म परायण थीं माता।
सत्य अहिंसा का हम सबको , पाठ तु ही तो सिखलाता।
साढ़े तेरह वर्ष हुए तो , सिंदूर चढ़ाया था माथा।
तब कस्तूरबा बनी भार्या , सुन लो अब इनकी गाथा।
हरी, मणी अरु राम , देव थे , चार तुम्हारे थे लाला।
पुत्ररत्न से भरे हुए थे , नहीं जनी कोई बाला।
जीवन में संघर्ष बहुत था, तब भी धर्म नहीं छोड़ा।
अंग्रेजों की अकड़ निकली , बम बारूद नहीं फोड़ा।
शस्त्र नहीं थे पास तुम्हारे , एक मात्र तो थी लाठी।
धोती चश्में में तू रहता , वेदों का भी था पाठी।
आंदोलन में जीवन बीता , भूल गए तब परिपाटी।
सन् सैंतालीस में तुमने तो , नाम करा ली यह माटी।
अंग्रेजों को भगा दिया था , गृहयुद्ध की अब बारी।
कुर्सी नेहरू को दी तुमने , कहा वही है अधिकारी।
'लौहपुरुष' को किया किनारे , नीति नई नित रच डाली।
इतना सब कर डाला फिर भी , लोग नही देते गाली।
तेरे कार्यों को जन-जन तक , नेहरू ने है पहुँचाया।
गाँधी 'राष्ट्रपिता बापू बन , दुनिया में है अब छाया।
सच को सच कहने का साहस , कम लोगों में है देखा।
सत्य सृजन सृजता प्रताप पर ,पार करूँ अब सब रेखा।
आचार्य प्रताप
superb to read...the life story og great bapu ji..
RépondreSupprimerThanks for giving your valuable time to read this article.
SupprimerSass
RépondreSupprimerहाहाहाहाहा
Supprimerअति सुन्दर। 👌🙏
RépondreSupprimerजय हो
Supprimer