शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

छंद-३ - दोहा छंद

मित्रो इस समूह का निर्माण केवल छंद सीखने और सिखाने के लिए किया गया है जो छंद के ज्ञाता हैं वो अभ्यास करें और जो नवांकुर या छंद सीखने के इच्छुक हैं वो प्रयास करें।।
छंद-३ - दोहा छंद
रसास्वाद परिवार सभी को सनातन छंद के पुरातन छंदों में से एक छंद का अभ्यास कराएगा जिसमें सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।

छंद अभ्यास-३
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       पिछले पाँच सात दशकों में हिंदी कविता की
बहुत दुर्दशा हुई जब आधुनिकता कविता के नाम पर हिंदी कविता को छन्द विधानों से बाहर घसीट पर अगीत की पटरी पर इतना दौड़ाया कि छांदस कविता लगभग मृतप्रायः हो गई और भारतीय समाज ये भी भूल गया कि असल कविता क्या होती है उसका आनंद क्या होता है सामाजिक जीवन में उसकी उपयोगिता क्यो अपरिहार्य है। इसके पीछे कुछ शक्तियाँ थी जो उच्च पदों पर बैठी थी उनको छांदस कविता लिखना नहीं आती थी पर उन्होंने कविता के उत्थान से जुड़े हर तंत्र को अपने चंगुल में जकड़ लिया और असल कविता का दम घुट गया। कुछ समय पहले ही उत्तर प्रदेश की सरकार ने कुछ ऐसे तथाकथित कवियों को यश भारती सम्मान से नवाजा जिन्होंने जीवन मे कभी छन्द बध्द कविता नहीं लिखी।कई बार लोग पूछते हैं,"ये अगीत क्या होता है?"तो कुछ मजाकियो का जबाब आता वो कविता जो समझ मे न आये उसे अगीत कहते हैं।हाँ पुरुस्कार आ सकता है,अगर जुगाड़ हो।
पर अब कविता अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ रही।कविता अब छन्द का श्रंगार ओढ़ने लगी है।नयी पीढ़ी छांदस कविता की ओर बढ़ रही।पर दुर्भाग्यवश आज भी ऐसे तथाकथित कवि मान्यनीय सम्माननीय हैं जिन्हें वैधानिक कविता का ज्ञान नहीं है।
आज जिस तरह भारतीय समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है  ऐसे में कविता की प्रासंगिकता बहुत बढ़ गयी।छांदस कविता में ही युग परिवर्तन की क्षमता है और ऐसा उसने अतीत में करके दिखाया है। अगर हिंदी काव्य धारा में भक्ति काल न आया होता तो आज दुनियाँ में वैदिक धर्म को मानने वाले नहीं मिलते। आज भी हिंदी में वर्तमान स्थितियों पर छांदस कविता लिखी जाय तो बहुत सारी समस्याएं स्वतः हल हो जाएगी। यद्यपि नयी पीढ़ी इस ओर बढ़ गयी है पर विषय बहुत सीमित हैं।उससे भी बुरा है कि उनकी पहुँच आम जनमानस तक नहीं है।निश्चय ही कवि समाज की जिम्मेदारी बड़ी है।एक ओर उसे कर्ण प्रिय,जनप्रिय और आम जनमानस से जुड़े विषयो पर कविता लिखनी है वहीं उसे आम जनमानस तक पहुंचाना भी है।
             मित्रो हम सनातनी छन्दों से दूर होते जा रहें हैं। अब दोहा, सोरठा , रोला, सवैया, घनाक्षरी, शिखरणी, सार ललित, मालिनी, शोकहर, सरसी, कलाधर, सैकडों छन्दों से हमारा सरोकार समाप्त होता जा रहा है। 
       आइये आज हम प्रारम्भिक छन्द दोहा पर कार्य करते हैं।

          दोहा विधान 
दोहा एक सममात्रिक छन्द है, यह चार चरण का होता है। सम चरण 13 मात्रा तथा विषम चरण 11 मात्रा भार होता है।  सम चरण का चरणान्त गुरु लघु रखने से लय सुन्दर रहती है ।

       दोहों के लगभग 23 प्रकार बताये गये हैं जो निम्न प्रकार हैं---

        मेरा शुरू से यह मानना रहा है कि दोहे के प्रथम और तृतीय चरण में 212 पदभार तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार अनिवार्य है। सम्भव है । तो बात है प्रथम और तृतीय चरण के अंत में 212 पदभार संयोजन की। 

दोहों के 23 प्रकार को ले कर जो एक बहुत ही बड़ा हौआ हमारे सामने अक्सर खड़ा होता रहा है, उस के भय को तनिक कम करने के उद्देश्य से मैंने तीन दोहों को एकाधिक बार किंचित बदल कर प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है। तो यह प्रयास पेश है आप सब की सेवामें............

1- भ्रमर दोहा
22 गुरु और 4 लघु वर्ण
भूले भी भूलूँ नहीं, अम्मा की वो बात।
दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।।
22 2 22 12 22 2 2 21
222 22 12 22 2 221

2 - सुभ्रमर दोहा
21 गुरु और 6 लघु वर्ण
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।।
22 2 11 2 12 22 2 2 21
222 22 12 22 2 221

3- शरभ दोहा
20 गुरु और 8 लघु वर्ण
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में हो आनन्द तो, दीवाली दिन-रात।।
22 2 11 2 12 22 2 2 21
2 2 2 221 2 222 11 21

4- श्येन दोहा
19 गुरु और 10 लघु वर्ण
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में रहे उमंग तो, दीवाली दिन-रात।।
22 2 11 2 12 22 2 2 21
2 2 12 121 2 222 11 21

5- मण्डूक दोहा
18 गुरु और 12 लघु वर्ण
जिन के तलुवों ने कभी, छुई न गीली घास।
वो क्या समझेंगे भला, माटी की सौंधास।।
11 2 112 2 12 12 1 22 21
2 2 1122 12 22 2 221 

6- मर्कट दोहा
17 गुरु और 14 लघु वर्ण
बुधिया को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
दिल में रहे उमंग तो, दीवाली दिन-रात।।
112 2 11 2 12 22 2 2 21
11 2 12 121 2 222 11 21

7- करभ दोहा
16 गुरु और 16 लघु वर्ण
झरनों से जब जा मिला, शीतल मन्द समीर।
कहीं लुटाईं मस्तियाँ, कहीं बढ़ाईं पीर।।
112 2 11 2 12 211 21 121
12 122 212 12 122 21 

8 - नर दोहा
15 गुरु और 18 लघु वर्ण
द्वै पस्से भर चून अरु, बस चुल्लू भर आब।
फिर भी आटा गुंथ गया!!!!! पूछे कौन हिसाब?????
2 22 11 21 11 11 22 11 21
11 2 22 11 12 22 21 121   

9 - हंस दोहा
14 गुरु और 20 लघु वर्ण
अपनी मरज़ी से भला, कब होवे बरसात?
नाहक उस से बोल दी, अपने दिल की बात।।
112 112 2 12 11 22 1121
211 11 2 21 2 112 11 2 21

10- गयंद दोहा
13 गुरु और 22 लघु वर्ण
चायनीज़ बनते नहीं, चायनीज़ जब खाएँ।
फिर इंगलिश के मोह में, क्यूँ फ़िरंग बन जाएँ।।
2121 112 12 2121 11 21
11 1111 2 21 2 2 121 11 21 

11 - पयोधर दोहा
12 गुरु और 24 लघु वर्ण
हर दम ही चिपके रहो, लेपटोप के संग।
फिर ना कहना जब सजन, दिल पे चलें भुजंग।।
11 11 2 112 12 2121 2 21
11 2 112 11 111 11 2 12 121 

12- बल दोहा
11 गुरु और 26 लघु वर्ण
सजल दृगों से कह रहा, विकल हृदय का ताप।
मैं जल-जल कर त्रस्त हूँ, बरस रहे हैं आप।।
111 12 2 11 12 111 111 2 21
2 11 11 11 21 2 111 12 2 21  

13- पान दोहा
10 गुरु और 28 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सरस सुहावना दीपों का त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 1212 22 2 221

14 - त्रिकल दोहा
9 गुरु और 30 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सरस सुहावना दीपावलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 1212 2211 221

15- कच्छप कोहा
8 गुरु और 32 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सरस सुहावना दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 1212 21 111 221

16- मच्छ दोहा
7 गुरु और 34 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सुख वर्धक सरस, दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 11211 111 21 111 221

17- शार्दूल दोहा
6 गुरु र 36 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 111 111 21 111 221

18-अहिवर दोहा
5 गुरु और 38 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अगम अपार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 111 121
1111 111 111 111 21 111 221

19- व्याल दोहा
4 गुरु और 40 लघु वर्ण
अचल, अटल, अनुपम, अमित, अजगुत, अगम, अपार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार
111 111 1111 111 1111 111 121
1111 111 111 111 21 111 221

20- विडाल दोहा
3 गुरु और 42 लघु वर्ण
अचल, अटल, अनुपम, अमित, अजगुत, अगम, अपार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दियनि-अवलि त्यौहार
111 111 1111 111 1111 111 121
1111 111 111 111 111 111 221

21- उदर दोहा
1 गुरु और 46 लघु वर्ण
डग मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम
तन तरसत, झुरसत हृदय, यही बिरह कर मरम
11 11 11 1111 111 11 1111 11 111
11 1111 1111 111 12 111 11 111
पहले और तीसरे चरण के अंत में 212 प्रावधान का सम्मान रखा गया है तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार वाले शब्दों के अपभ्रश स्वरूप को लिया गया है  

22- श्वान दोहा
2 गुरु और 44 लघु वर्ण
डग मग महिं डगमग करत, परत चुनर पर दाग
तबहि सुं प्रति पल छिन मनुज, सहत रहत विरहाग
11 11 11 1111 111 111 111 11 21
111 1 11 11 11 111 111 111 1121 

23 - सर्प दोहा
सिर्फ़ 48 लघु वर्ण
डग मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम
तन तरसत, झुरसत हृदय, इतिक बिरह कर मरम
11 11 11 1111 111 11 1111 11 111
11 1111 1111 111 111 111 11 111
पहले और तीसरे चरण के अंत में 212 प्रावधान का सम्मान रखा गया है तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार वाले शब्दों के अपभ्रश स्वरूप को लिया गया है । 
       मात्रिक छन्दों मे मात्रा गणना भी एक  समस्या होती है अत: उसे भी समझना समीचीन होगा। 
      मात्रा गणना, छन्द, यति, गति, गण, लघु, गुरु समझने के लिए हम निम्न को आधार बना सकते हैं - - - 

आज विमर्ष मे हम छन्द/मात्रा गणना पर चर्चा करेंगे जो आगे भी छन्द लिखने मे हमारी सहायता करेंगे - - - - - 
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मात्राओं की गणना

(१) संयुक्त व्यन्जन से पहला ह्रस्व वर्ण भी 'गुरू अर्थात् दीर्घ' माना जाता है।

(२) विसर्ग और अनुस्वार से युक्त वर्ण भी "दीर्घ" जाता माना है। यथा – 'दुःख और शंका' शब्द में 'दु' और 'श' ह्रस्व वर्ण होंने पर भी 'दीर्घ माने जायेंगे।

(३) छन्द भी

आवश्यकतानुसार चरणान्त के वर्ण 'ह्रस्व' को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व माना जाता है।

यति और गति

यति – छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में 'विराग' और पद्य में 'यति' कहते हैं।

गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को 'गति' कहते हैं।

तुक – पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को 'तुक' कहते हैं। अर्थात् पद के अन्त में एक से स्वर वाले एक या अनेक अक्षर आ जाते हैं, उन्हीं को 'तुक' कहते हैं।
तुकों में पद श्रुति, प्रिय और रोंचक होता है तथा इससे काव्य में लथपत सौन्दर्य आ जाता है।

गण
तीन–तीन अक्षरो के समूह को 'गण' कहते हैं। गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जाते हैं : –
 
नाम स्वरूप    उदाहरण   सांकेतिक
१  यगण ।ऽऽ वियोगी    य
२ मगण ऽऽऽ मायावी   मा
३ तगण ऽऽ। वाचाल    ता
४ रगण ऽ।ऽ बालिका    रा
५ जगण ।ऽ। सयोग     ज
६ भगण ऽ।। शावक   भा
७ नगण ।।। कमल      न
८ सगण ।।ऽ सरयू      स

निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –

"यमाता राजभान सलगा"

इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
'रगण' का स्वरूप जानने के लिए 'रा' को लिया फिर उसके आगे वाले 'ज' और 'भा' वर्णों को मिलाया। इस प्रकार 'राज भा' का स्वरूप 'ऽ।ऽ' हुआ। यही 'रगण' का स्वरूप है।

छन्दों के भेद

छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
(१) #वर्ण_वृत्त – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें 'वर्ण वृत्त' कहते हैं।
(२) #मात्रिक– जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें 'मात्रिक' छन्द कहते हैं।
(३) #अतुकांत_और_छंदमुक्त – जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें 'छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।

छन्द क्या है?

यति, गति, वर्ण या मात्रा आदि की गणना के विचार से की गई रचना छन्द अथवा पद्य कहलाती है।

चरण या पद – छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में उसके नियमानुसार दो चार अथवा छः पंक्तियां होती हंै। उसकी प्रत्येक पंक्ति चरण या पद कहलाती हैं। जैसे –

रघुकुल रीति सदा चलि जाई।
प्राण जाहिं बरू वचन न जाई।
उपयुक्त चौपाई में प्रथम पंक्ति एक चरण और द्वितीय पंक्ति दूसरा चरण हैं।

मात्रा – किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे 'मात्रा' कहते हैं। 'मात्राएँ' दो प्रकार की होती हैं –
(१) लघु । (२) गुरू S

लघु मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है। जैसे – अ, इ, उ, अं की मात्राएँ ।

गुरू मात्राएँ– उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में लघु मात्राओं की अपेक्षा दुगुना अथवा तिगुना समय लगता हैं। जैसे – ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ।

लघु वर्ण  – ह्रस्व स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'लघु वर्ण' माना जाता है, उसका चिन्ह एक सीधी पाई (।) मानी जाती है।

गुरू वर्ण – दीर्घ स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'गुरू वर्ण' माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है।
उदाहरणार्थ –
क, कि, कु, र्क – लघु मात्राएँ हैं।
का, की, कू , के , कै , को , कौ – दीर्घ मात्राएँ हैं।

विधाएं : मात्राभार

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छन्द बद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है , इसके निम्न

लिखित नियम हैं :-

(१) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है जिसे लघु कहते हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ

(२) दीर्घ स्वरों की मात्रा २ होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे-आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ

(३) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे -

.... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /

.... य,र,ल,व,श,ष,स,ह

(४) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार १ ही रहती है

(५) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार

.... २ हो जाता है

(६) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,

.... जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११, गाँव=२१

(७) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार २ हो जाता है , जैसे -

.... रंग=२१ , अंक=२१ , कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२

(८) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,

.... जैसे - नहीं=१२ , भींच=२१ , छींक=२१ ,

.... कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं,

(९) संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे - स्वर=११ , प्रभा=१२

.... श्रम=११ , च्यवन=१११

(१०) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,

..... जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११, श्रुति=११

(११) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,

..... जैसे - भ्राता=२२ , श्याम=२१ , स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,

(१२) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,

..... जैसे - नम्र=२१ , सत्य=२१ , विख्यात=२२१

(१३) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,

..... जैसे - हास्य=२१ , आत्मा=२२ , सौम्या=२२ , शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.  

(१४) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (१२) के कुछ अपवाद भी हैं , जिसका आधार   

..... पारंपरिक उच्चारण है , अशुद्ध उच्चारण नहीं !

..... जैसे- तुम्हें=१२ , तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२,  

..... कुम्हार=१२१, कन्हैया=१२२ , मल्हार=121  

(15) अपवाद के उदाहरणों में अधिकांशतः संयुक्ताक्षर का परवर्ती अक्षर 'ह' होता है

..... किन्तु यह कोई नियम नहीं है जैसे कुल्हाड़ी=122 जबकि कुल्हड़=211

  आइये  विधान के अनुसार हम "दोहा-छन्द"  का कल  सृजन करें तथा सम्यक विचार विनिमय भी। 

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