अविनाश तिवारी: बघेली सिनेमा के अग्रदूत

अविनाश तिवारी: बघेली सिनेमा के अग्रदूत

अविनाश तिवारी, बघेली बोली के प्रमुख कलाकार एवं कॉमेडियन, विंध्य क्षेत्र के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में उभरे हैं। मध्य प्रदेश के सीधी जिले के खजुरी गाँव से आने वाले इस प्रतिभाशाली कलाकार ने अपनी सादगी, स्थानीय संस्कृति से गहरा जुड़ाव और सामाजिक मुद्दों पर प्रभावी अभिव्यक्ति के माध्यम से लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई है।


अविनाश तिवारी का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ, जहां से उन्होंने अपनी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के बल पर यात्रा शुरू की। 2017 में उनके पहले वीडियो "पेनिसिलीन की खोज" ने बिहार टॉपर घोटाले पर व्यंग्यात्मक प्रहार किया, जो बघेली बोली में होने के बावजूद पूरे देश में वायरल हुआ। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उनके द्वारा निर्मित "तिवारी आशिक", "मलकिन उपासे हईं", "टॉयलेट एक व्यथा", और "किल्लत पानी के" जैसे वीडियो ने न केवल बघेली दर्शकों बल्कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी खासी सराहना बटोरी। इन वीडियो की विशेषता यह रही कि इनमें हास्य के साथ-साथ स्थानीय समस्याओं और सामाजिक कुरीतियों पर गहरी टिप्पणी भी शामिल थी।

कुशल संगीतज्ञ भी हैं अविनाश तिवारी

अभिनय के अलावा, अविनाश ने बघेली गीतों में भी अपनी छाप छोड़ी है। उनके गाने "ङ भय जिंदगी", "कुछ आगे बढ़य ई कहानी", और "रोड है खराब तो अबेर हो गई रानी" जैसे गीत लोगों के बीच खूब लोकप्रिय हुए। इन गीतों में स्थानीय संस्कृति और समस्याओं का सटीक चित्रण मिलता है, जिससे श्रोता तुरंत जुड़ाव महसूस करते हैं।


बघेली सिनेमा में योगदान

बुधिया (2022)
अविनाश तिवारी की पहली बघेली फीचर फिल्म "बुधिया" ने 12 नवंबर 2022 को दर्शकों से रूबरू हुई। मात्र 35 लाख रुपये के सीमित बजट में बनी इस फिल्म ने स्थानीय सिनेमा के विकास में एक नया अध्याय जोड़ा। हालांकि, फिल्म में कुछ विवादित दृश्यों के कारण रीवा और सतना में क्षत्रिय समाज ने विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप यह बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सकी।

"बुधिया" के विवादों से अविनाश ने महत्वपूर्ण सबक सीखा और अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति को और परिष्कृत किया। फिल्म की असफलता के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने सपनों को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया।

 कुँवारापुर
अपनी दूसरी फिल्म "कुँवारापुर" के लिए अविनाश ने बैंक से कर्ज लेकर अपने जुनून और प्रतिबद्धता का परिचय दिया। इस फिल्म में बॉलीवुड के प्रसिद्ध कॉमेडियन असरानी का अभिनय भी शामिल है, जो बघेली सिनेमा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार है और दर्शकों को इसका बेसब्री से इंतजार है।

आगामी फिल्में और भविष्य की संभावनाएँ

कुख्यात
अविनाश की तीसरी फिल्म "कुख्यात" वर्तमान में प्री-प्रोडक्शन या प्रोडक्शन चरण में है। फिल्म का शीर्षक संकेत देता है कि यह किसी चर्चित या विवादास्पद व्यक्तित्व अथवा घटना पर आधारित हो सकती है। बघेली बोली में निर्मित यह फिल्म क्षेत्रीय दर्शकों के लिए विशेष महत्व रखती है और क्षेत्रीय सिनेमा के विकास में एक महत्वपूर्ण कड़ी होगी।
"कुख्यात" के माध्यम से अविनाश विंध्य क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक मुद्दों को एक नए परिप्रेक्ष्य से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। फिल्म की कहानी और रिलीज डेट के बारे में अभी आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसके लिए दर्शकों में खासा उत्साह देखा जा रहा है।

लोटा
अविनाश की चौथी फिल्म "लोटा" भी विकास के चरण में है। शीर्षक से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह फिल्म ग्रामीण जीवन और लोक संस्कृति से प्रेरित एक हास्य प्रधान कथानक पर आधारित होगी। लोटा भारतीय ग्रामीण परिवेश का एक अभिन्न हिस्सा है, और इसके इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी निश्चित रूप से दर्शकों को हंसाने और सोचने पर मजबूर करेगी।

"लोटा" के माध्यम से अविनाश ग्रामीण भारत की जटिलताओं, चुनौतियों और खूबसूरतियों को दर्शाने का प्रयास करेंगे। फिल्म के विस्तृत विवरण अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन अविनाश की पिछली कृतियों को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह फिल्म भी सामाजिक संदेश और मनोरंजन का सुंदर समन्वय होगी।

अविनाश तिवारी विंध्य क्षेत्र के पहले ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने बघेली भाषा और संस्कृति को डिजिटल और सिनेमाई माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। उनकी रचनाएँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि स्थानीय समस्याओं, परंपराओं और मूल्यों का दस्तावेजीकरण भी करती हैं।

हालांकि, अविनाश को अपने सफर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और भविष्य में भी करना पड़ सकता है:

1. **सामाजिक स्वीकार्यता**: "बुधिया" के विवाद से स्पष्ट है कि क्षेत्रीय फिल्मों के लिए सामाजिक स्वीकार्यता एक बड़ी चुनौती है। परंपरागत मूल्यों और आधुनिक अभिव्यक्ति के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल कार्य है।

2. वित्तीय संघर्ष: क्षेत्रीय सिनेमा के लिए फंडिंग प्राप्त करना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। अविनाश को "कुँवारापुर" के लिए बैंक से कर्ज लेना पड़ा, जो इस वास्तविकता को रेखांकित करता है। उनसे बातचीत के दौरान उन्होंने बताया था कि उनके पास पहले कोई कार थी जो उन्हें अति प्रिय थी क्योंकि उनकी पहली कार थी और फिल्मों के वित्तीय संघर्ष में उन्होंने अपनी इस कार को भी बेंच दिया था।

3. वितरण और पहुँच: क्षेत्रीय फिल्मों के लिए व्यापक वितरण नेटवर्क और प्लेटफॉर्म्स तक पहुँच सुनिश्चित करना एक अन्य महत्वपूर्ण चुनौती है।

इन चुनौतियों के बावजूद, अविनाश तिवारी अपने सांस्कृतिक मिशन के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं। उनका उद्देश्य बघेली भाषा और संस्कृति को न केवल संरक्षित करना, बल्कि उसे आधुनिक माध्यमों से नई ऊंचाइयों तक ले जाना है।


अविनाश तिवारी आज विंध्य क्षेत्र के एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने अपने संघर्ष, प्रतिभा और दृढ़ निश्चय से न केवल अपना मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि क्षेत्रीय कला और संस्कृति के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

उनकी आगामी फिल्में "कुख्यात" और "लोटा" बघेली सिनेमा के विकास में मील का पत्थर साबित होंगी और क्षेत्रीय कला को नई दिशा प्रदान करेंगी। अविनाश तिवारी के माध्यम से, बघेली बोली और विंध्य क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एक नई पहचान प्राप्त कर रही है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

आचार्य प्रताप 
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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