गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

पलायन - एक विवशता

'पलायन - एक विवशता'

यह दिल्ली की सड़कों पर भीड़ के बीच खोए एक भटकते किशोर की कहानी है। उसका नाम रवि था और वह मात्र १६ वर्ष का था। पिता की मृत्यु के बाद मां के साथ रहने वाला रवि घर की बिगड़ती हालत से तंग आ गया था। मां बेसहारा थी और उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था। 

रवि ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी जिंदगी इतनी जल्दी बदल जाएगी। एक दिन उसकी खुशहाल दुनिया थी और दूसरे दिन वह खुद को एक गरीब किशोर के रूप में पाया। परिवार की गरीबी से तंग आकर उसने घर छोड़ने का फैसला किया। एक रात जब उसकी मां सो रही थी, तो वह चुपके से घर से निकल गया।

सड़कों पर भटकते हुए रवि अनजाने ही दिल्ली की गलियों में घुस गया। धीरे-धीरे वह भीड़ में खो गया। भूख और प्यास से तड़पते हुए उसने कुछ लोगों से भीख मांगी लेकिन उसे ज्यादातर ठुकरा दिया गया। कई बार तो लोगों ने उसे गालियां भी दी।  

एक दिन जब वह बेहद कमजोर पड़ गया तो उसे एक संगठन के लोगों ने बचा लिया। उन्होंने उसे अपने शरणगृह ले जाकर उसका इलाज किया और खाना खिलाया। रवि को वहां सुरक्षित महसूस हुआ। उसने सोचा कि शायद उसकी किस्मत बदलने वाली है।

लेकिन जल्द ही उसे पता चला कि वहां बच्चों को भीख मंगवाया जाता है और उसे भी ऐसा ही करना पड़ेगा। उसके विरोध करने पर उसे पिटाई का डर दिया गया। रवि बहुत डर गया क्योंकि उसने कभी नहीं सोचा था कि वह इस हालत में फंस जाएगा।  

कुछ दिन बाद रवि को एक मौका मिला और वह वहां से भाग निकला। उसकी निगाहें अब दिल्ली की सड़कों पर अपना घर ढूंढने लगी थीं। उसका भटकना जारी रहा। एक दिन वह बहुत थक गया और बेहोश हो गया। जब उसकी आंखें खुलीं तो वह एक अस्पताल में पाया।

वहां डॉक्टरों से बात करके पता चला कि रवि को वहां किसी भलेमानस ने लाया था। डॉक्टरों ने उसकी मदद की और उसकी मां का पता लगवा दिया। कुछ ही दिनों में रवि की मां भी वहां आ गई। अपनी छोटी सी दुनिया छोड़कर भटकने वाला रवि अंत में अपनी ही मां के पास लौट आया।

रवि और उसकी मां दोनों के आंसू बहने लगे थे। रवि ने अपनी आंखों से देखा था कि सड़क पर निर्वासित होने का मतलब क्या होता है। अब वह समझ गया था कि घर ही सबसे सुरक्षित जगह है। उसकी पलायन की कोशिश बहुत बड़ी गलती थी क्योंकि पलायन से केवल और अधिक परेशानियां आतीं हैं।

उस दिन रवि ने घर लौटने का फैसला किया। जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने का संकल्प लिया। उसने प्रण किया कि वह पढ़ाई करेगा और अपनी मां की आर्थिक मदद करेगा। पलायन की इस विवशता ने रवि को जीवन की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू करवा दिया था।

आचार्य प्रताप
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