कुछ साहित्य शब्द को लेकर दोहे
लाख मना कर दो उन्हें ,माने ना आदेश।
सुबह शाम क्यों भेजते ,शुभ मुहूर्त संदेश।।०१।।
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साहित्यिक है यह पटल , चले बात साहित्य।
साहित्यिक हर वस्तु से , बढ़ जाता लालित्य।।०२।।
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क्या-कैसे-क्यों कब कहें , समझ न पाते लोग।
साहित्यक हर पटल का , करतें हैं उपभोग।।०३।।
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मैं का कर के त्याग यदि , हम को समझें लोग।
निश्चित ही पाते शिखर , पाते हैं जग भोग।।०४।।
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मैं-मैं करके मर गए , जग कितने संत।
हम की जिसने ली शरण , बैठे बने महंत।।०५।।
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आचार्य प्रताप
मैं का कर के त्याग यदि , हम को समझें लोग।
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही पाते शिखर , पाते हैं जग भोग।।
अत्यन्त सुन्दर सीख ।
सादर आभार दी आपको पसंद आया
हटाएंसादर नमन
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (20-12-2020) को "जीवन का अनमोल उपहार" (चर्चा अंक- 3921) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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|हरिः ॐ तत्सत्|
हटाएंबहुत-बहुत आभार आपका इस प्रेम और स्नेह हेतु
||सादर नमन ||
सुंदर शब्दों के साथ अर्थ पूर्ण दोहे..
जवाब देंहटाएं|हरिः ॐ तत्सत्|
हटाएंबहुत-बहुत आभार आपका इस स्नेहपूर्ण सराहना हेतु
||सादर नमन ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । शुभ कामनाएं ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर दोहा प्रस्तुति आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंहम की जिसने ली शरण , बैठे बने महंत...अत्यंत महत्वपूर्ण हैं ये शब्द
|हरिः ॐ तत्सत्|
हटाएंबहुत-बहुत आभार आपका इस स्नेहपूर्ण सराहना हेतु
||सादर नमन ||
उम्दा दोहे.....🙏🌷
जवाब देंहटाएं|हरिः ॐ तत्सत्|
हटाएंबहुत-बहुत आभार आपका इस स्नेहपूर्ण सराहना हेतु
||सादर नमन ||
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएं|हरिः ॐ तत्सत्|
हटाएंबहुत-बहुत आभार आपका इस स्नेहपूर्ण सराहना हेतु
||सादर नमन ||