रविवार, 13 दिसंबर 2020

शिक्षाप्रद तथा सामाजिक सन्देश देने वाली फिल्म- प्रोफेसर

शिक्षाप्रद तथा सामाजिक सन्देश देने वाली किसी फिल्म का समीक्षात्मक वर्णन कीजिये।

प्रोफ़ेसर फिल्म जिसका निर्देशन लेख टंडन ने किया है तथा निर्माता-एफ. सी. मेहरा,लेखक-अबरार अल्वी,अभिनेता-शम्मी कपूर,कल्पना,ललिता पवार, संगीतकार-शंकर जयकिशन, छायाकार-द्वारक दिवेचा, संपादक-प्राण मेहरा को सारा श्रेय जाता है इस फिल्म की प्रदर्शन-तिथि- 11 मई 1962 को भारत में तथा हिन्दी भाषा में प्रदर्शन किया गया था इस फिल्म की लम्बाई  https://youtu.be/-bLD2OrNT-c इस विडियो लिंक के अनुसार २ घंटे ४३ मिनिट ४४ सेकंड है | तथा कलाकार- शम्मी कपूर - प्रोफेसर प्रीतम खन्ना,कल्पना- नीना वर्मा,ललिता पवार - सीता देवी वर्मा,,परवीन चौधरी,,सलीम- रमेश ,प्रतिमा देवी- श्रीमती खन्ना (प्रीतम की माँ),रशीद ख़ान- हनुमान सिंह ,बेला बोस,रत्नमाला,,रतन गौरंग,,गोपाल,,टुन टुन,इफ़्तेख़ार मुख्य भूमिका में रहे |

                                     


                इस फिल्म के आरम्भ में फिल्माया गया कि  १९६२ के दशक में भी नौकरी एक समस्या थी, और बीमार माँ के उपचार हेतु पैसे का आभाव था नायक प्रीतम के पास, उस समय भी ट्यूशन पढाया जाता था इसी संदर्भ में में प्रीतम खन्ना एक प्रोफेसर के पास नौकरी की पुष्टि करने जाता है जो कि उसने कुछ समय पहले अपने प्रोफेसर के द्वारा दार्जिलिंग शहर में आवेदन भेजा था | ‘वो दार्जिलिंग से कुछ खबर आयी प्रोफेसर साहब’ ऐसा प्रीतम खन्ना पूछते हुए कहता है प्रोफ़ेसर ने उत्तर में  कहा कि हाँ आज ही सुबह आया है  प्रीतम खुश हो जाता है और पूछता है क्या बोला उन्हेंने | “नौजवान प्रोफ़ेसर नहीं चाहिए, वयोवृद्ध प्रोफ़ेसर चाहिए उन्हें”  प्रोफ़ेसर पुनः उत्तर में कहते हैं | प्रोफ़ेसरने कहा यदि कुछ पैसो की आवश्यकता हो तो कहना मुझे , प्रीतम कहता है नहीं,नहीं प्रोफ़ेसरसाहब! आपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखने हेतु  ऐसा बोल कर चला गया | जैसे ही घर पहुँचा वो देखता है की माँ  का स्वस्थ और अधिक ख़राब हो रहा है और माँ की गंभीर अवस्था को देखते हुए वह वहाँ से भगता हुआ प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा और बस इतना ही कहा कि माँ की हालत ............

            प्रोफ़ेसर  ने सब भाँप लिया और उसे डाँटते हुए कहा- ‘पहले नहीं बात सकता था’ , ये ले कुछ पैसे और माँ को तुरंत अस्पताल ले जाओ, प्रीतम पैसे लेकर माँ को अस्पताल में भर्ती करवा देता है और उसी समय माँ को नौकरी की सारी बात बाताता है तब माँ ने कहा कि बस दाड़ी की कमीं है ,इतने में प्रीतम के मन में कुछ विचार आया और उसने अपने कुछ कपडे और सामान लिया एवम् दार्जिलिंग के लिए निकल पड़ा | वहाँ पहुँच कर प्रीतम देखता है कि सीता देवी एक बूढ़ी औरत जो कि दो नन्हें बालक  बंटी-मुन्नू एवम् दो युवतियों नीना और रीता  के साथ रहती हैं, जब प्रीतम बदले हुए भेश के साथ सीतादेवी के घर पहुँचता है तब वो घर में नहीं थीं , और बच्चे ऊधम-चौकड़ी कर रहे थे, वृद्ध प्रोफ़ेसर बने हुए प्रीतम वहाँ पहुँचता है तो उनकी इस उछल-कूद से प्रीतम का भी गिरना-पड़ना होता है इसी समयांतरालमें सीतादेवी का प्रवेश होता है और प्रीतम को देख आग-बबूला हो उठती हैं और कहतीं है कि मेरी अनुपस्थिती में ये पुरुष यहाँ क्या कर रहा है तभी सभी बच्चों की दृष्टि प्रोफ़ेसर प्रीतम पर पड़ती अहि और वे सब स्तब्ध रह जाते हैं, और वहाँ से अपने-अपने कमरे में चले जाते है तभी प्रोफ़ेसर अपना परिचय देते है सीतादेवी उन्हें बताती है कि आपको इन युवतियों (नीना-रीता) को संस्कृत पढ़ाना है तभी प्रीतम स्तब्ध –सा खड़ा हो जाता है और सीतादेवी के चेहरे की ओर देखता है कि संस्कृत पढ़ाने के लिए इतनी दूर आया हूँ, फिर कुछ देर सोचता रहता है कि क्या कहूँ और वह हाँ में उत्तर देते हुए सर हिलाता है, तभी सीतादेवी अपनी बच्चियों में से एक को प्रोफेसर को उनका कमरा दिखाने को को कहती है और वो शैतान तो थी ही अतः पहले गलत कमरा बताया फिर सही कमरा बताया कर छोड़ दिया प्रोफ़ेसर ने किसी लडकी का हाथ देखकर उस कमरे से निकल कर पहले बताये हुए कमरे में चले गए और वो कमरा किसी और का था जहाँ से एक स्त्री का आगमन होता है और वह उससे कुछ माँगती है तब उसने यह नहीं देखा कि कौन है ? अचानक देखकर चीख उठती है और इतने में उस स्त्री का पति भी आ जाता है  और अपनी पत्नी पर लाँछन लगता है इससे या सिद्ध होता है की उस समय पर भी यह रोग लोगों में पाया जाता था और आज इक्कीसवीं सड़ी में भी | तभी सभी का आगमन होता है और पुष्टि होने के बाद प्रोफ़ेसर को छोड़ दिया जाता है और सही कमरे में पहुँचा दिया जता है | पहले दिन की सुबह ही प्रोफ़ेसर के विलम्ब से आने पर सीतादेवी अप्रसन्नता दिखाते हुए जाने को कह देती हैं तब लड़कियां खुश हो जाती हैं , लड़कियों का खुश दिखना सीतादेवी ने भाँप लिया और जाते हुए प्रोफ़ेसर को रोक लिया और प्रोफ़ेसर को कहा कि इनके पाठ्यक्रम शीघ्र ही समाप्त करे और चलता हों पठन-पाठन के दौरान सीतादेवी की समस्याओं को प्रीतम भाँपते हुए पता लगाया कि क्यों ये अपने बच्चों पर क्रोध दिखातीं हैं , तब पता चलता है कि ये युवतियाँ सीतादेवी की बहन की बेटियाँ है और उन्होंने प्रेम-विवाह कर लिया था, अन्ततः बहन का स्वर्गवास हो जाता है और बेटियों का दायित्व सीतादेवी के कन्धों पर आ जाता है  बेटियाँ भी ऐसी गलती न करें अतः उनका नीना- रीता और बंटी-मुन्नू के साथ कठोरता बरतना बिलकुल सही था  किन्तु बेटियाँ तो यही समझती थीं कि सीतादेवी अत्यधिक कठोर हैं और ह्रदय विहीन भी |



            जिन पर बंधन और कठोरता बहुतायत मात्र में दिखाई जाती है वो उतना ही स्वतंत्र होना चाहते है इस बात की पुष्टि इससे होती है - एक दिन लडकियाँ अपने कॉलेजसे गयी थी और प्रीतम वृद्ध प्रोफ़ेसर से अपने वास्तविक रूप में आकर बाहर एक कोट सिलवाने गया था था वही नीना को देखकर प्रीतम के अन्दर का प्रीतम फिर जाग गया और एक युवा होने के गुण दिखने लगा अर्थात नीना के साथ ऐसे व्योहार करने लगा जैसे कि वो उससे प्रीत करता हो और प्रीतम नीना का प्रीतम बनाने के मार्ग पर अग्रसर होने लगा | उस टेलर की दुकान पर गलती से नीना का दुपट्टा प्रीतम की कोट से चिपक कर प्रीतम के पास आ गया था तब बाहर कुछ और वार्तालाप करेंगे इस उदेश्य से वहीं रुक जाता है और हल्की छेड़छाड़ के समय नाम पूछता है किंतु न बताने पर भे नीना को नाम से बुलाता है तब नीना पूछती है कि नाम कैसे जानते हो और उसने टेलर के यहाँ सुना ऐसा बोल देता है और नीना की चुनरी दे देता है और टेलर के पास से नीना एक कपडा लाती है उसे ले लेता है, इस बात के भनक किसी को न लगे इससे सावधानी बरतते हुए नीना जाने लगती है तब प्रीतम उससे लिखित में मांगता अहि कि आपकी चुनरी आपको मिल गयी है इसकी रशीद दे दीजिये और अंत में अपने हस्ताक्षर कीजिये लेकर दोनों अपने –अपने घर की ओर चले जाते हैं और आज घर पहुँचाने में थोड़ी देर हो जाती है जब भीतर प्रवेश कर रही होती हैं तो सीतादेवी क्रोध दिखाते हुए – ‘आज इतनी देर क्यों हुयी?’ सब शांत थे इतने में प्रोफ़ेसर बने प्रीतम कहते है कि आज मैं भी बाज़ार गया था तो मेरे कारण विलम्ब हुआ है, प्रोफ़ेसर के इस व्योवहार से समस्या के समय युवतियों की सहायता के भाव ज्ञात होते हैं | इस प्रका युवा प्रीतम और नीना का मिलना मिलाना होता रहता और दोनों के मध्य प्रीत हो ही जाती है दूसरी ओर नीना की छोटी बहन रीता का सबसे छुपकर रमेश से मिलना होता रहता है, इधर वृद्ध प्रोफ़ेसर बने प्रीतम की अच्छे गुणों के कारण सीतादेवी भी प्रोफ़ेसर प्रीतम को मन ही मन पसंद करने लगती हैं | नीना-रीता के गाँव की भूमि के संबंध में सीतादेवी का शहर आना–जाना होता रहता था ,एक बार सीतादेवी को इसी कार्य हेतु शहर आना हुआ तब प्रोफसर ने कहा कि मेरा भतीजा प्रीतम न्यायलय में वकील से मिल लेगा| इधर नीना-प्रीतम के बारे में शहर आ कर सीतादेवी से भतीजे प्रीतम के और नीना के बारे में प्रोफ़ेसर बताते हैं, तो सीतादेवी प्रोफेसर की माँ से मिलने एक दिन अस्पताल चली आईं और माँ नीना-प्रीतम के विवाह की बात कर रहीं थीं किन्तु सीतादेवी ने अपने और प्रोफ़ेसर के विवाह की बात समझ प्रसन्नता से माँ के चरण स्पर्श कर चली आती है और घर आकर दो विवाह की घोषणा कर दी तब तक प्रीतम ने नीना को अपने वृद्ध प्रोफ़ेसर बनने की बात बता दी थी रीता और रमेश के मिलते रहने की बात बात को एक दिन देख लिया था परिणामतः समझाया किन्तु तब तक देर हो चुकी थी और रीता  रमेश के बच्चे की माँ बनने वाली होती है यह बात अंत में पता चलते ही प्रोफ़ेसर  रमेश के घर जाकर उसे बताता है इधर अंतिम समय में रीता प्रोफ़ेसर  से बात करते हुए भगती हुयी जाकर पहाड़ से झरने में कूद जाती है तब प्रोफ़ेसर स्फूर्ति से रीता के पीछे भागते है और वो भी झरने में कूदकर रीता को तो बचा लेते है किन्तु अपनी मर्यादा नहीं बचा पाते उनके कूदने से भेद खुल जाता है कि प्रीतम ही वृद्ध प्रोफ़ेसर बना हुआ था |


प्रीतम पर गाँव के लोग और सीतादेवी भी लाँछन लगातें है इस बात को प्रीतम सह नहीं पाता और रमेश के घर पहुँचता है इधर रमेश अन्य लड़की से विवाह हेतु दूल्हा बनकर घोड़ी चढ़ रहा था रमेश को जस-का-तास उठा लाता है और रीता के सामने पटककर बताता है कि ये है रीता के बच्चे का पिता रीता की हालत गंभीर थी वह कोमा में चली गयी थी और अभी भी सभी लोग प्रीतम को ही दोषी मानते है किन्तु प्रीतम रमेश को पीटते हुए रीता को पुकारने की बात कहता है जितना पीटता उतना ही रमेश रीता को बुलाता और रीता को चेतना आते ही सस्र भेद खुल गया और रमेश –रीता और नीना-प्रीतम के विवाह से ही यह फिल्म की हैप्पी इंडिंग  होती है |

 


     विशेष – समाज और परिस्थिति को समझकर से प्रीतम के कार्य करने की बात तथा समाज की कुरीतियों पर व्यंग करती हुई यह फिल्म सन १९६२ में फिल्म प्रोफेसर  बनी  जो कि हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसके निर्माता एफ. सी. मेहरा और निर्देशक लेख टंडन हैं। फिल्म में मुख्य भूमिकायें शम्मी कपूरकल्पना और ललिता पवार ने निभाई हैं। फिल्म बॉक्स ऑफ़िस पर एक सफल फिल्म साबित हुई थी। इस फिल्म को तमिल में नदिगन  और कन्नड़ में गोपीकृष्ण  नाम से बनाया गया था। शम्मी कपूर प्रीतम नाम का एक युवक है जिसे अपनी मां के तपेदिक के उपचार के लिए एक नौकरी की सख्त ज़रूरत है। उसे एक युवती और दो स्कूली बच्चों को पढ़ाने का काम मिल सकता है पर उनकी अविभावक सीता देवी वर्मा की यह शर्त है कि शिक्षक कोई बुजुर्ग ही हो। प्रीतम बुजुर्ग का भेष धर कर नौकरी पा जाता है। युवती और सीता देवी वर्मा के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं, क्योंकि युवती के माता पिता की मृत्यु हाल ही में हुई है और सीता देवी पर उसकी और दोनो बच्चों की जिम्मेवारी गयी है। प्रीतम युवक के रूप में युवती से प्यार करता है जबकि बुजुर्ग के रूप में सीता देवी से ठिठोली करता है

      निर्माता एफसी मेहरा, निर्देशक लेख टंडन, अभिनेता शम्मी कपूर और संगीत निर्देशक जोड़ी शंकर जयकिशन ने बाद में 1969 की फिल्म प्रिंस में  भी एक साथ काम किया है |

          कलाकार- शम्मी कपूर - प्रोफेसर प्रीतम खन्ना,कल्पना- नीना वर्मा,ललिता पवार - सीता देवी वर्मा,,परवीन चौधरी,,सलीम- रमेश ,प्रतिमा देवी- श्रीमती खन्ना (प्रीतम की माँ),रशीद ख़ान- हनुमान सिंह ,बेला बोस,रत्नमाला,,रतन गौरंग,,गोपाल,,टुन टुन,इफ़्तेख़ार मुख्य भूमिका में रहे |


            गीत-  इस फिल्म में कुल छः गीत फिल्माये गये हैं -  "कोई आयेगा"- गायिका आशा भोंसले और लता मंगेशकर ,"ये उमर है" गयिका आशा भोसले, उषा मंगेशकर और मन्ना डे तथा गीतकार -हसरत जयपुरी जी, "मैं चली मैं चली" गायक - मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर और गीतकार शैलेन्द्र कुमार जी , "ऐ गुलबदन" गायक - मोहम्मद रफी तथा गीतकार - हसरत जयपुरी जी, "खुली पलक में झूठा गुस्सा" गायक  मोहम्मद रफी तथा गीतकार शैलेन्द्र जी "आवाज दे कर हमें तुम बुलाओ" गायक मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर तथा गीतकार हसरत जयपुरी जी रहे।


समीक्षक-
आचार्य प्रताप
प्रबन्ध निदेशक
अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचर पत्रम्
अणुड़ाक-acharypratap@outlook.com
संपर्कसूत्र- +91-8121-487-232



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