कुण्डलिया छंद: एक विवेचन - एक व्यापक शोध-यात्रा
साहित्य की विविध विधाओं में छंद एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनमें कुण्डलिया छंद एक ऐसी काव्य शैली है जिसने हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। डॉ. विपिन पांडे की पुस्तक 'कुण्डलिया छंद: एक विवेचन' इस छंद की व्यापक और गहन समीक्षा प्रस्तुत करती है, जो न केवल एक शोध ग्रंथ है, बल्कि साहित्यिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भी।
पुस्तक की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है इसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य। लेखक ने कुण्डलिया छंद की विकास यात्रा का विस्तृत अन्वेषण किया है, जिसमें तुलसीदास से लेकर आधुनिक कालखंड तक के रचनाकारों और उनकी रचनाओं का विश्लेषण किया गया है। विशेष रूप से, आधुनिक काल को कुण्डलिया छंद का स्वर्णिम काल माना गया है, क्योंकि इस दौरान इस छंद में अनेक महत्वपूर्ण संग्रह प्रकाशित हुए।
पुस्तक की एक उल्लेखनीय विशेषता है इसकी विषयगत विविधता। लेखक ने कुण्डलिया छंद में लिखी गई रचनाओं को विभिन्न विषयों में वर्गीकृत किया है:
- नारी चेतना: पुरुष और महिला रचनाकारों द्वारा नारी के विविध आयामों को प्रकाशित किया गया है।
- जल संरक्षण: पर्यावरण और जल के महत्व पर केंद्रित रचनाएँ।
- त्योहार और संस्कृति: भारतीय परंपराओं और त्योहारों का वर्णन।
- तकनीकी युग: आधुनिक तकनीक और उसके सामाजिक प्रभावों पर चिंतन।
- हास्य-व्यंग्य: सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ।
लेखक ने कुल तेईस कुण्डलियाकारों की रचनाओं का विश्लेषण किया है। बाबा बैद्यनाथ झा, शकुंतला अग्रवाल 'शकुन', नीता अवस्थी जैसे रचनाकारों की कृतियों को विशेष महत्व दिया गया है। विशेष रूप से, काका हाथरसी, बाबा वैद्यनाथ झा और ऋता शेखर 'मधु' पर विस्तृत चर्चा की गई है।
पुस्तक हिंदी भाषा के महत्व और उसकी वर्तमान स्थिति पर भी प्रकाश डालती है। लेखक का मानना है कि हमें अपनी भाषा को संरक्षित और संवर्धित करने की आवश्यकता है, विशेषकर जब अंग्रेजी भाषा बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा में है।
डॉ. विपिन पांडे ने केवल रचनाओं का संकलन नहीं किया, बल्कि उनका गहन विश्लेषण भी किया है। उनका दृष्टिकोण न केवल वर्णनात्मक है, बल्कि आलोचनात्मक भी। विशेष रूप से, नारी विषयक रचनाओं में यथार्थ की कमी पर उनकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
कुण्डलिया छंद की संरचनात्मक विशेषताओं का भी विस्तृत वर्णन किया गया है। मूल रूप से दोहा और रोला पर आधारित, इस छंद में समय के साथ परिवर्तन आए हैं। प्रारंभिक स्वरूपों में आदि और अंत के शब्दों में समानता की बाध्यता नहीं थी।
'कुण्डलिया छंद: एक विवेचन' एक महत्वपूर्ण शोध ग्रंथ है जो न केवल इस छंद के इतिहास और विकास को प्रकाशित करता है, बल्कि समकालीन साहित्यिक परिदृश्य में इसके महत्व को भी रेखांकित करता है। डॉ. विपिन पांडे की यह पुस्तक नवोदित साहित्यकारों और शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ साबित होगी।
पुस्तक विवरण
- समीक्ष्य कृति: कुण्डलिया छंद: एक विवेचन
- लेखक: डॉ. विपिन पाण्डेय जी
- प्रकाशक: श्वेतवर्णा प्रकाशन
- पृष्ठ संख्या: 200
- मूल्य: 299/-
यह पुस्तक साहित्य, भाषा और संस्कृति के प्रेमियों के लिए एक अनमोल भेंट है।