रिश्तों का एक विशेष महत्व

भारतीय संस्कृति में रिश्तों का एक विशेष महत्व रहा है। हर रिश्ते को एक विशिष्ट स्थान और सम्मान दिया गया है। भाभी और साली के रिश्ते भी इसी परंपरा का हिस्सा हैं। आइए, इन रिश्तों के विभिन्न पहलुओं को समझें:

::भाभी को माँ का दर्जा::

   भारतीय संस्कृति में माँ का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। माँ के त्याग, प्रेम और समर्पण की तुलना किसी अन्य रिश्ते से नहीं की जा सकती। इसी भावना के चलते, कुछ परिस्थितियों में भाभी को भी माँ के समान सम्मान दिया जाता है।

   राजतंत्र के समय में, जब युवा राजकुमार युद्ध में जाते थे, तब उनकी माँ उन्हें अपना दूध पिलाकर विदा करती थी। यह एक प्रतीकात्मक कार्य था, जो माँ और बेटे के बीच के अटूट बंधन को दर्शाता था। माँ अपने बेटे से कहती थी कि वह उसके दूध की लाज रखे, अर्थात वीरता से लड़े और कभी पीठ न दिखाए। यह परंपरा युवाओं में वीरता और कर्तव्यनिष्ठा की भावना जगाने के लिए थी।

   इसी प्रकार, विवाह के समय भी यह परंपरा निभाई जाती थी। दूल्हे की माँ उसे सार्वजनिक रूप से स्तनपान करवाती थी और उसे अपने कर्तव्यों का स्मरण कराती थी। यह कार्य एक ओर जहाँ माँ-बेटे के रिश्ते की पवित्रता को दर्शाता था, वहीं दूसरी ओर नवविवाहित युवक को अपने नए जीवन में जिम्मेदारियों का बोध कराता था।

   परन्तु, जीवन में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ भी आती हैं जब माँ उपस्थित नहीं हो पाती। ऐसे में, भाभी इस महत्वपूर्ण भूमिका को निभाती है। वह अपने देवर को स्तनपान करवाकर माँ के कर्तव्यों का निर्वहन करती है। यह कार्य भाभी के त्याग और प्रेम को दर्शाता है, जो उसे माँ के समान सम्मान का अधिकारी बनाता है।
::भाभी-देवर का रिश्ता::

   भारतीय परिवार व्यवस्था में भाभी-देवर का रिश्ता बहुत खास माना जाता है। देवर को छोटा भाई माना जाता है, और भाभी उसकी देखभाल करने की जिम्मेदारी लेती है। परंपरागत रूप से, एक संस्कारवान देवर अपनी भाभी से बात करते समय सम्मान प्रदर्शित करता है। वह नीची नज़र रखकर बात करता है, जो उसके आदर और शिष्टाचार को दर्शाता है।

   यह रिश्ता प्रेम, सम्मान और जिम्मेदारी पर आधारित होता है। भाभी अपने देवर की देखभाल करती है, उसे सही मार्गदर्शन देती है, और उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी कारण से कई परिवारों में भाभी को 'छोटी माँ' या 'मम्मी' के रूप में संबोधित किया जाता है।

:साली का रिश्ता:

   साली के रिश्ते को लेकर भी कई धारणाएँ प्रचलित हैं। "साली आधी घरवाली" जैसी कहावतें इसी का उदाहरण हैं। परंतु, यह समझना महत्वपूर्ण है कि साली वास्तव में पत्नी की बहन होती है, और इस नाते वह परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनती है।

   जीजा-साली का रिश्ता भी बहुत खास माना जाता है। जीजा अपनी साली के पिता को 'पापा जी' कहता है, जो उसे साली का बड़ा भाई बना देता है। यह रिश्ता मज़ाक और प्यार का मिश्रण होता है, जहाँ दोनों एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं और एक-दूसरे के साथ स्वतंत्र महसूस करते हैं।

   परन्तु, यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस रिश्ते की व्याख्या सम्मान और मर्यादा की सीमाओं में ही की जानी चाहिए। कभी-कभी लोग इस रिश्ते के बारे में अनुचित मजाक या टिप्पणियाँ करते हैं, जो न केवल अशोभनीय है बल्कि इस पवित्र रिश्ते के मूल भाव को भी नुकसान पहुँचाता है।

::आधुनिक समय में चुनौतियाँ::

   वर्तमान समय में, जैसे-जैसे समाज बदल रहा है, इन परंपराओं की व्याख्या और उनके पालन में भी बदलाव आ रहा है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के युग में, कभी-कभी इन पवित्र रिश्तों के बारे में अनुचित टिप्पणियाँ या मजाक किए जाते हैं। यह चिंता का विषय है, क्योंकि इससे हमारी सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

   यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं के मूल भाव को समझें, उनका सम्मान करें, लेकिन साथ ही उन्हें आधुनिक संदर्भ में भी देखें। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन रिश्तों की पवित्रता और महत्व बना रहे, लेकिन साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों का भी सम्मान हो।

भारतीय संस्कृति में रिश्तों का एक विशेष महत्व और स्थान है। भाभी को माँ का दर्जा देना, देवर का भाभी के प्रति सम्मान, और साली को परिवार का अभिन्न अंग मानना - ये सभी हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। इन परंपराओं और मान्यताओं का मूल उद्देश्य परिवार में प्रेम, सम्मान और एकता को बढ़ावा देना है।

हालाँकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम इन रिश्तों और परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में समझें और उनका पालन करें। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन रिश्तों का सम्मान किया जाए, लेकिन साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों का भी ध्यान रखा जाए। 

समाज के बदलते स्वरूप में, हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक मूल्यों के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता है। हमें अपनी परंपराओं का सम्मान करना चाहिए, लेकिन साथ ही उन्हें समय के अनुसार ढालना भी सीखना चाहिए। इस प्रकार, हम अपनी संस्कृति की समृद्धि को बनाए रख सकते हैं और साथ ही एक प्रगतिशील और समावेशी समाज का निर्माण कर सकते हैं।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि हर रिश्ते की अपनी गरिमा और महत्व होता है। हमें हर रिश्ते को सम्मान और प्यार के साथ निभाना चाहिए, चाहे वह माँ-बेटे का रिश्ता हो, भाभी-देवर का, या फिर जीजा-साली का। यही हमारी संस्कृति की असली ताकत है, और यही हमें एक मजबूत और स्नेहपूर्ण समाज बनाने में मदद करेगी।
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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