आधुनिक जीवनशैली


एक समय था गाँव-गाँव में , लोग मनाते थे त्यौहार।
घर-घर बना अखाड़ा होता, घर-घर होते थे सरदार।।

उन्हीं घरों माता-बहनें, उन्हीं में रहता था परिवार।
पड़ी मुसीबत जब घर में तब, पहुँचे यहाँ मोहल्ले चार।।

कच्ची मिट्टी के घर होते ,पक्के होते रिश्तेदार।
समय ने कैसे पलटा खाया, बचा न कोई अपना यार।।

आज परिस्थित जब देखूँ तब, मन आए एक विचार।
कम शिक्षित थे लेकिन पहले, होते पूरे शिष्टाचार।।

रूखी-सूखी खाकर भी था , जीवन उनका सदाबहार।
पढ़े-लिखों में आ जाते क्यों? आनैतिकता के व्योवहार।।

आचार्य प्रताप


acharypratap

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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