मोल अपने मैं प्रणय का क्या बताऊँ ।
वेदना मैं निज ह्रदय की क्या सुनाऊँ ।।
प्रेरणा का
एक साधन प्रेम होता ।
प्रीत न
छुद्र था
मेरा समर्पण ही सदा यूँ –
भेद तेरे
मन का क्यों न जान पाऊँ ।
वेदना मैं निज ह्रदय......... ।।०१।।
मानसपटल
को जीतकर दी मात तूने ।
प्रीत के
बदले किया प्रतिघात तूने ।
मौन रह मैं
उर की पीड़ा कह न पाऊँ –
घाव अपने
आज फिर मैं क्यों दिखाऊँ ।
वेदना मैं निज ह्रदय....... ।।०२।।
खो न
जाऊँ कँगनों की खनकनों में।
जो बस गये हैं धड़कनों में।
ड़बड़बाते
दृग लिये यह सोचता हूँ -
निज
प्रणय की आज गाथा क्युँ मैं गाऊँ ।
वेदना मैं निज ह्रदय........ ।।०३।।
प्रार्थना में
प्रीत की ही कामना थी ।
प्रीत के
अतिरिक्त न कुछ कामना थी ।
किन्तु मेरे
तुम प्रणय को सुन न पाई ।
फिर वेदना
के गीत क्यों तुमको सुनाऊँ।
वेदना मैं निज ह्रदय........ ।।०४।।
किंचित
तुम मेरी
आराधिता थी जान पाती।
आत्म का
स्तम्भ व आधार थी तुम-
धन्य है तू वेदने जग को बताऊँ।
वेदना मैं निज ह्रदय........ ।।०५।।
-आचार्य प्रताप
प्रबंध निदेशक
अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्रम्
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-12-2020) को "हाड़ कँपाता शीत" (चर्चा अंक-3917) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आपका
हटाएंhttps://www.youtube.com/acharypratap
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रसंशात्मक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार
हटाएंhttps://www.youtube.com/acharypratap
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए धन्यवाद
हटाएं|| सादर नमन ||
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत हेतु आभार आपका पधारने तथा उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु
हटाएं||सादर नमन ||
आत्म का
जवाब देंहटाएंस्तम्भ व आधार थी तुम-
धन्य है तू वेदने जग को बताऊँ।... बहुत ही आत्मविभोर करने वाली रचना प्रताप जी
नमन आपको धैर्य पूर्वक पढने के लिए
हटाएंकल सुबह इसका पाठन मेरे youtube चैनेल पर किया जाना सुनिश्चित गया गया है
https://www.youtube.com/acharypratap