गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

शीर्षक - प्रतिभा की कमी नहीं है है

 



























शीर्षक - प्रतिभा की कमी नहीं है है   

आज शाम को मैं अपने गाँव में खेतों की ओर गया था और वह पर मेरे खेतों में बोये हुए गेहूँ में पानी लगाया जा रहा था मुझे तो अधिक जानकारी नहीं है खेती-बड़ी के बारे में, फिर भी मैं खेतो की ओर गया और वहाँ मैंने देखा कि पड़ोस के बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे और उनका बैट तो बैट की भाँति ही था किन्तु बैट नहीं था, इसका अर्थ यह है कि बैट बाज़ार का नहीं था गेंद तो सामान्य थी किन्तु विकट साधारण लकड़ी के थे गिल्लियाँ नही थी एक ओर तो पत्थर रख कर विकट बनाये हुए थे।  मैंने देखा कि बच्चे बड़ी कुशलता से खेल खेल रहे हैं, उनको खेलते देख मैंने भी उनके साथ खेलने का विचार बनाया और उनसे आग्रह किया कि मुझे भी खेलने का अवसर दें  क्योंकि मुझे मेरा बचपन याद आ रहा था बचपन में  हम भी ऐसे ही खेलते थे । मैं उनके साथ खेलने के लिए आया जब तक फिल्डिंग कर रहा था तब तक तो ठीक रहा किन्तु जैसे ही मेरी बैटिंग की बारी आयी बच्चों ने मुझे नियम और अनुशासन बताने आरम्भ कर दिए। एक ने कहा कि जोर से मरने पर आउट हो जायेंगे ,दूसरे ने कहा कि यदि बॉल काँटेमें गयी तो आउट , अन्यों ने भी अपने तरीके से बताया कि बॉल यदि उड़ते हुए छक्के तक गयी तो आउट , पीछे का कोई रन नहीं है , पीछे मारने पर आउट हो जायेंगे लेफ्ट साइड में मारने पर भी आउट है क्योंकि खिलड़ी कम हैं । दूसरे साइडयदि पत्थर के इर्द-गिर्द लग गया तो आउट और भी अनेक नियम और अनुशासन बताये और जब उनका बोलना बंद हुआ तब मैंने कहा कि अब खेल सकते है न  या और भी कोई नियम बचे हैं।  बच्चे एक दूसरे की की तरफ देखने लगे इस आशा से कि कोई और नियम बताएगा किन्तु उनके द्वारा बनाये गए नियम उनके पास न होने पर उन सब ने कहा- “नहीं भैया! बस इतने ही हैं”। फिर हमने लगातार एक घंटे तक उनके साथ खेल खेला और उन्हें बहुत कुछ सिखाया जैसे बॉल्लिंग कैसे करना, कितनी दूरी से रन-अप लेना बॉल को देख कर शॉट मारना इत्यादि बच्चों ने भी बहुत आनद लिए और अंत में कहा भैया कल भी आइएगा।

मुझे उन बच्चों में हर एक में एक-एक प्रतिभा नज़र आई कोई दौड़ता अच्चा है किसी में स्फूर्ति अधिक है किसी में सोचने और तर्क करने की शक्ति बहुत अधिक है प्रतिभा की कमी नहीं है हमारे गाँव के बच्चों में।

आचार्य प्रताप  

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