#गीत
आरक्षित डिब्बों को देखकर उपजी शब्द-श्रृंखला
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पसरे सारे लोग यहाँ क्यों,
लेकर चादर शाल।
आरक्षित डिब्बों का देखा ,
हाल बडा़ बेहाल।।
कोई पसरा पहने जूते,
कोई पसरा मीत।
कोई बैठे नजरे ताके ,
कोई सुनता गीत।
एक पेड़ पर चिड़ियाँ बैठी,
झुकती जैसे डाल।
आरक्षित डिब्बों का देखा ,
हाल बडा़ बेहाल।।०१।।
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यहाँ-वहाँ खुजलाते सोचें,
बीते कैसे रात?
त्वरित कथा वर्णन कर डाला,
लिख सच्ची अब बात।
सब आरक्षित डिब्बों में हैं,
जैसे पडे अलाल।
आरक्षित डिब्बों का देखा ,
हाल बडा़ बेहाल।।०२।।
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जाने कब तक ऐसा होगा,
करिए निज पहचान।
ऐसी गर्दी लेती जानें ,
कब तक जाएं जान।
भीड़ बढ़ी दिखता है ऐसे ,
जैसे राई थाल।
आरक्षित डिब्बों का देखा ,
हाल बडा़ बेहाल।।०३।।
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गीतकार
आचार्य प्रताप
हैदराबाद, तेलंगाणा